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ढोंग रच रच ढकोसले पै+ला।
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ढोंग रच रच ढकोसले फ़ैला।
 
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जब उन्होंने कि जाति घर घाले।
 
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तब रखें पाँव फ़ूँक फ़ूँक न क्यों।
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और के कान फूँकने वाले।
 
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तुम भली चाह को समझ लो तिल।
 
तुम भली चाह को समझ लो तिल।
 
 
ताल होगा उसे बढ़ा लेना।
 
ताल होगा उसे बढ़ा लेना।
 
 
ताल तिल को न जो बना पाया।
 
ताल तिल को न जो बना पाया।
 
 
काम आया न तो तिलक देना।
 
काम आया न तो तिलक देना।
  
 
दुख सहे, पर दूसरों का हित करे।
 
दुख सहे, पर दूसरों का हित करे।
 
 
वह रहा घिसता सदा ही इस लिए।
 
वह रहा घिसता सदा ही इस लिए।
 
 
यह मरम जी में समाया जो नहीं।
 
यह मरम जी में समाया जो नहीं।
 
 
तो भला चन्दन लगाया किस लिए।
 
तो भला चन्दन लगाया किस लिए।
  
 
इस तरह के हैं कई टीके बने।
 
इस तरह के हैं कई टीके बने।
 
 
जो कि तन के रोग देते हैं भगा।
 
जो कि तन के रोग देते हैं भगा।
 
 
जो न मन के रोग का टीका बना।
 
जो न मन के रोग का टीका बना।
 
 
तो हुआ फिर लाभ क्या टीका लगा।
 
तो हुआ फिर लाभ क्या टीका लगा।
  
 
सोहते दिन रात माथे पर रहे।
 
सोहते दिन रात माथे पर रहे।
 
 
देखता हूँ बाल भी अब तो पके।
 
देखता हूँ बाल भी अब तो पके।
 
 
जो न केसर की कियारी जी बना।
 
जो न केसर की कियारी जी बना।
 
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तो न केसर के तिलक कुछ कर सके।
तो न केसर के तिलक वु+छ कर सके।
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जो न हरि के प्यार का रँग चढ़ सका।
 
जो न हरि के प्यार का रँग चढ़ सका।
 
 
जो न चाही लालियों का सँग रहा।
 
जो न चाही लालियों का सँग रहा।
 
 
जो चिरौरी चाह की होती रही।
 
जो चिरौरी चाह की होती रही।
 
 
तो न रोरी के तिलक का रँग रहा।
 
तो न रोरी के तिलक का रँग रहा।
  
 
छाप भलमंसी लगा करके छला।
 
छाप भलमंसी लगा करके छला।
 
 
दिन दहाड़े की ठगी धोखा दिया।
 
दिन दहाड़े की ठगी धोखा दिया।
 
 
नटखटी का रंग जो उतरा नहीं।
 
नटखटी का रंग जो उतरा नहीं।
 
 
तो किसी ने क्या लगा टीका लिया।
 
तो किसी ने क्या लगा टीका लिया।
  
 
जो न उस में झलक दिखायेंगी।
 
जो न उस में झलक दिखायेंगी।
 
 
सब भली चाहतें ठिकाने से।
 
सब भली चाहतें ठिकाने से।
 
 
आप के तो खिले हुए मुँह की।
 
आप के तो खिले हुए मुँह की।
 
 
'श्री' रहेगी न 'श्री' लगाने से।
 
'श्री' रहेगी न 'श्री' लगाने से।
  
जब कि चोटें हों धारम पर चल रही।
+
जब कि चोटें हों धरम पर चल रही।
 
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औ बनावट ने उसे हो ढक लिया।
 
औ बनावट ने उसे हो ढक लिया।
 
 
तान ली तब आप ने लम्बी अगर।
 
तान ली तब आप ने लम्बी अगर।
 
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तो तिलक लम्बा लगा कर क्या किया।
तो तिलक लम्बा लगा कर क्याकिया।
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तीन गुन के न जो तिकट टूटे।
 
तीन गुन के न जो तिकट टूटे।
 
 
तुम रहे जो तिलोक से ऐंठे।
 
तुम रहे जो तिलोक से ऐंठे।
 
 
तो तमाशा तुम्हें बनाने को।
 
तो तमाशा तुम्हें बनाने को।
 
 
हैं तिकोने तिलक तुले बैठे।
 
हैं तिकोने तिलक तुले बैठे।
  
 
धूर्त हैं, गोल गोल बातों में।
 
धूर्त हैं, गोल गोल बातों में।
 
+
जो धरम का मरम छिपाते हैं।
जो धारम का मरम छिपाते हैं।
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तुम करो गोलमाल मत ऐसा।
 
तुम करो गोलमाल मत ऐसा।
 
 
नित तिलक गोल यह बताते हैं।
 
नित तिलक गोल यह बताते हैं।
  
देख कर पाँव धार्म का उखड़ा।
+
देख कर पाँव धर्म का उखड़ा।
 
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भूल कर भूख प्यास बाँधा कमर।
 
भूल कर भूख प्यास बाँधा कमर।
 
 
तू खड़ा रात दिन अगर न रहा।
 
तू खड़ा रात दिन अगर न रहा।
 
 
क्या किया तो खड़ा तिलक दे कर।
 
क्या किया तो खड़ा तिलक दे कर।
  
 
जो न तिरछी आँख से तिरछे रहे।
 
जो न तिरछी आँख से तिरछे रहे।
 
+
कुछ न पाया तो तिलक तिरछे दिये।
वु+छ न पाया तो तिलक तिरछे दिये।
+
धर्म के आड़े न आये जो कभी।
 
+
धार्म के आड़े न आये जो कभी।
+
 
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तो तिलक आड़े लगाये किस लिए।
 
तो तिलक आड़े लगाये किस लिए।
  
 
छोड़ करके सजी सरग की सेज।
 
छोड़ करके सजी सरग की सेज।
 
 
तू गया आग में नरक की लेट।
 
तू गया आग में नरक की लेट।
 
+
धर्म की ओर फेर करके पीठ।
धार्म की ओर फेर करके पीठ।
+
 
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दे तिलक पालता रहा जो पेट।
 
दे तिलक पालता रहा जो पेट।
  
 
क्या किया दे कर बड़े उजले तिलक।
 
क्या किया दे कर बड़े उजले तिलक।
 
 
जो रहा मन मैल में सब दिन सना।
 
जो रहा मन मैल में सब दिन सना।
 
 
जो न जी में छींट परहित की पड़ी।
 
जो न जी में छींट परहित की पड़ी।
 
 
तो हुआ क्या छींट माथे का बना।
 
तो हुआ क्या छींट माथे का बना।
  
वु+छ न छूआछूत से बच कर हुआ।
+
कुछ न छूआछूत से बच कर हुआ।
 
+
किस लिए खटराग फ़ैलाये बड़े।
किस लिए खटराग पै+लाये बड़े।
+
 
+
 
छूतवाले बन कपट की छूत से।
 
छूतवाले बन कपट की छूत से।
 
+
जब तिलक पर लोभ के धब्बे पड़े।
जब तिलक पर लोभ के धाब्बे पड़े।
+
  
 
जो करें पार और की नावें।
 
जो करें पार और की नावें।
 
 
हैं भँवर के वही पड़े पाले।
 
हैं भँवर के वही पड़े पाले।
 
 
फूँकते कान क्यों नहीं अपना।
 
फूँकते कान क्यों नहीं अपना।
 
 
और के कान फूँकनेवाले।
 
और के कान फूँकनेवाले।
 
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18:24, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण

ढोंग रच रच ढकोसले फ़ैला।
जब उन्होंने कि जाति घर घाले।
तब रखें पाँव फ़ूँक फ़ूँक न क्यों।
और के कान फूँकने वाले।

तुम भली चाह को समझ लो तिल।
ताल होगा उसे बढ़ा लेना।
ताल तिल को न जो बना पाया।
काम आया न तो तिलक देना।

दुख सहे, पर दूसरों का हित करे।
वह रहा घिसता सदा ही इस लिए।
यह मरम जी में समाया जो नहीं।
तो भला चन्दन लगाया किस लिए।

इस तरह के हैं कई टीके बने।
जो कि तन के रोग देते हैं भगा।
जो न मन के रोग का टीका बना।
तो हुआ फिर लाभ क्या टीका लगा।

सोहते दिन रात माथे पर रहे।
देखता हूँ बाल भी अब तो पके।
जो न केसर की कियारी जी बना।
तो न केसर के तिलक कुछ कर सके।

जो न हरि के प्यार का रँग चढ़ सका।
जो न चाही लालियों का सँग रहा।
जो चिरौरी चाह की होती रही।
तो न रोरी के तिलक का रँग रहा।

छाप भलमंसी लगा करके छला।
दिन दहाड़े की ठगी धोखा दिया।
नटखटी का रंग जो उतरा नहीं।
तो किसी ने क्या लगा टीका लिया।

जो न उस में झलक दिखायेंगी।
सब भली चाहतें ठिकाने से।
आप के तो खिले हुए मुँह की।
'श्री' रहेगी न 'श्री' लगाने से।

जब कि चोटें हों धरम पर चल रही।
औ बनावट ने उसे हो ढक लिया।
तान ली तब आप ने लम्बी अगर।
तो तिलक लम्बा लगा कर क्या किया।

तीन गुन के न जो तिकट टूटे।
तुम रहे जो तिलोक से ऐंठे।
तो तमाशा तुम्हें बनाने को।
हैं तिकोने तिलक तुले बैठे।

धूर्त हैं, गोल गोल बातों में।
जो धरम का मरम छिपाते हैं।
तुम करो गोलमाल मत ऐसा।
नित तिलक गोल यह बताते हैं।

देख कर पाँव धर्म का उखड़ा।
भूल कर भूख प्यास बाँधा कमर।
तू खड़ा रात दिन अगर न रहा।
क्या किया तो खड़ा तिलक दे कर।

जो न तिरछी आँख से तिरछे रहे।
कुछ न पाया तो तिलक तिरछे दिये।
धर्म के आड़े न आये जो कभी।
तो तिलक आड़े लगाये किस लिए।

छोड़ करके सजी सरग की सेज।
तू गया आग में नरक की लेट।
धर्म की ओर फेर करके पीठ।
दे तिलक पालता रहा जो पेट।

क्या किया दे कर बड़े उजले तिलक।
जो रहा मन मैल में सब दिन सना।
जो न जी में छींट परहित की पड़ी।
तो हुआ क्या छींट माथे का बना।

कुछ न छूआछूत से बच कर हुआ।
किस लिए खटराग फ़ैलाये बड़े।
छूतवाले बन कपट की छूत से।
जब तिलक पर लोभ के धब्बे पड़े।

जो करें पार और की नावें।
हैं भँवर के वही पड़े पाले।
फूँकते कान क्यों नहीं अपना।
और के कान फूँकनेवाले।