भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"केहि समुझावौ / कबीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कबीर |संग्रह= }} {{KKBhajan}} <poem> केहि समुझा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | [[Category:भजन]] | |
<poem> | <poem> | ||
केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥ | केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥ |
14:56, 20 अप्रैल 2014 का अवतरण
केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥
इक दु होयॅं उन्हैं समुझावौं
सबहि भुलाने पेटके धन्धा।
पानी घोड पवन असवरवा
ढरकि परै जस ओसक बुन्दा॥ १॥
गहिरी नदी अगम बहै धरवा
खेवन- हार के पडिगा फन्दा।
घर की वस्तु नजर नहि आवत
दियना बारिके ढूँढत अन्धा॥ २॥
लागी आगि सबै बन जरिगा
बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो
जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा॥ ३॥