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"कठिन समय की कविता / निरंजन श्रोत्रिय" के अवतरणों में अंतर
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− | + | बुनता है भाषा कठिन समय की | |
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+ | बिम्ब और तर्क | ||
+ | जटिलता-सम्प्रेषण | ||
+ | मौलिकता-दोहराव के | ||
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− | + | बुदबुदाता कवि तय करता | |
− | + | अपने सम्पादक, आलोचक और पाठक | |
− | और | + | और चोर-दरवाजे भी |
− | + | किसी कठिन समय पर भागने के लिये | |
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− | + | जबकि सारे जाहिल लोग | |
− | + | थक कर सोये हैं | |
− | + | नींद से लड़ता कवि | |
+ | लिखता एक आसान-सी कविता | ||
+ | कठिन समय पर | ||
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− | + | कविता के लिये | |
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16:00, 21 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
‘कठिन समय है! कठिन समय!!’
बुदबुदाता कवि
उठ बैठता आधी रात
लेकर कलम-दवात
भक्क से जल उठता लैम्प
रोशनी के वृत्त में
संचारी भाव स्थायी रफप से
बैठने लगते कविता की तली में
तय करता है कवि
ड्राफ्ट कठिन समय का
बुनता है भाषा कठिन समय की
याद करता किसी कठिन समय को
तय करता अनुपात
बिम्ब और तर्क
जटिलता-सम्प्रेषण
मौलिकता-दोहराव के
‘कठिन समय -कठिन समय’
बुदबुदाता कवि तय करता
अपने सम्पादक, आलोचक और पाठक
और चोर-दरवाजे भी
किसी कठिन समय पर भागने के लिये
फिलहाल
जबकि सारे जाहिल लोग
थक कर सोये हैं
नींद से लड़ता कवि
लिखता एक आसान-सी कविता
कठिन समय पर
प्रिय पाठक!
सचमुच कठिन समय है यह
कविता के लिये