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"कठिन समय की कविता / निरंजन श्रोत्रिय" के अवतरणों में अंतर

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अचार की बरनी
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‘कठिन समय है! कठिन समय!!’
जिसके ढक्कन पर कसा हुआ था कपड़ा
+
बुदबुदाता कवि
 +
उठ बैठता आधी रात
 +
लेकर कलम-दवात
  
ललचाता मन कि
+
भक्क से जल उठता लैम्प
एक फाँक स्वाद भरी
+
रोशनी के वृत्त में
रख लें मुँह में की कोशिश पर
+
संचारी भाव स्थायी रफप से
पारा अम्माँ का सातवें आसमान पर
+
बैठने लगते कविता की तली में
भन्नाती हुई सुनाती सजा फाँसी की  
+
जो अपील के बाद तब्दील हो जाती
+
कान उमेठ कर चैके से बाहर कर देने में.
+
  
आम, गोभी, नींबू, गाजर, मिर्च, अदरक और आँवला
+
तय करता है कवि
फलते हैं मानो बरनीस्थ होने को
+
ड्राफ्ट कठिन समय का
राई, सरसों, तेल, नमक, मिर्च और हींग-सिरके
+
बुनता है भाषा कठिन समय की
का वह अभ्यस्त अनुपात
+
याद करता किसी कठिन समय को
बचाए रखता स्वाद बरनी की तली दिखने तक .
+
तय करता अनुपात
 +
बिम्ब और तर्क
 +
जटिलता-सम्प्रेषण
 +
मौलिकता-दोहराव के
  
सख्त कायदे-कानून हैं इनके डालने और
+
‘कठिन समय -कठिन समय’
महप़फूज़ रखने के
+
बुदबुदाता कवि तय करता
गंदे-संदे, झूठे-सकरे हाथों
+
अपने सम्पादक, आलोचक और पाठक
और बहू-बेटियों को उन चार दिनों
+
और चोर-दरवाजे भी
बरनी न छूने देने से ही
+
किसी कठिन समय पर भागने के लिये
बचा रहता है अम्माँ का
+
यह अनोखा स्वाद-संसार!
+
  
सरल-सहज चीजों का जटिलतम मिश्रण
+
फिलहाल
सब्जी-दाल से भरी थाली के कोने में
+
जबकि सारे जाहिल लोग
रसीली और चटपटी फांक की शक्ल में
+
थक कर सोये हैं
परोस दी जाती है घर की विरासत!
+
नींद से लड़ता कवि
 +
लिखता एक आसान-सी कविता
 +
कठिन समय पर
  
चैके में करीने से रखी
+
प्रिय पाठक!
ये मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित कृतियाँ
+
सचमुच कठिन समय है यह
केवल जायके का बदलाव नहीं
+
कविता के लिये
भरोसा है मध्य वर्ग का
+
कि न हो सब्जी घर में भले ही
+
आ सकता है कोई भी आधी रात!
+
 
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16:00, 21 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

‘कठिन समय है! कठिन समय!!’
बुदबुदाता कवि
उठ बैठता आधी रात
लेकर कलम-दवात

भक्क से जल उठता लैम्प
रोशनी के वृत्त में
संचारी भाव स्थायी रफप से
बैठने लगते कविता की तली में

तय करता है कवि
ड्राफ्ट कठिन समय का
बुनता है भाषा कठिन समय की
याद करता किसी कठिन समय को
तय करता अनुपात
बिम्ब और तर्क
जटिलता-सम्प्रेषण
मौलिकता-दोहराव के

‘कठिन समय -कठिन समय’
बुदबुदाता कवि तय करता
अपने सम्पादक, आलोचक और पाठक
और चोर-दरवाजे भी
किसी कठिन समय पर भागने के लिये

फिलहाल
जबकि सारे जाहिल लोग
थक कर सोये हैं
नींद से लड़ता कवि
लिखता एक आसान-सी कविता
कठिन समय पर

प्रिय पाठक!
सचमुच कठिन समय है यह
कविता के लिये