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दुनिया को तरतीबवार बनाने के संकल्प के साथ
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अचार की बरनी
सभा में पिछली सीटों पर यह जो हुजूम बैठा है बेतरतीब-सा
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जिसके ढक्कन पर कसा हुआ था कपड़ा
वे इस दौर के चर्चित युवा कवि हैं
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दुनिया-जहान की चिन्ताओं से भरे
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मगर ठहाका लगाते एक निश्चिन्त-सा
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घर से बाहर कई दिनों से लेकिन घर जैसे आराम के साथ
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युवा कवि एक नई दुनिया की इबारत गढ़ रहे हैं.
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वे सुन पा रहे हैं मीलों दूर से आती कोई दबी हुई सिसकी
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ललचाता मन कि
उनकी तर्जनी की ज़द में है विवश आँखों से टपका हर एक आँसू
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एक फाँक स्वाद भरी
उनकी हथेलियों में थमा है मनुष्यता का निराश और झुर्राया हुआ चेहरा
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रख लें मुँह में की कोशिश पर
उनके झोले में हैं बारीक संवेदनों और ताज़ा भाषा-शिल्प से बुने
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पारा अम्माँ का सातवें आसमान पर
कुछ अद्भुत काव्य-संग्रह
+
भन्नाती हुई सुनाती सजा फाँसी की
जो समर्पित हैं किसी कवि मित्र, आलोचक या संपादक को.  
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जो अपील के बाद तब्दील हो जाती
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कान उमेठ कर चैके से बाहर कर देने में.  
  
इस समूचे कार्य-व्यापार में
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आम, गोभी, नींबू, गाजर, मिर्च, अदरक और आँवला
ओझल हैं तो केवल
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फलते हैं मानो बरनीस्थ होने को
उन युवा कवियों की पत्नियों के थके मगर दीप्त चेहरे
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राई, सरसों, तेल, नमक, मिर्च और हींग-सिरके
जिन्होंने थाम रखी है इन युवा कवियों की गृहस्थी की नाज़ुक डोर
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का वह अभ्यस्त अनुपात
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बचाए रखता स्वाद बरनी की तली दिखने तक .
  
युवा कवियों की पत्नियों की कनिष्ठिकाएं
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सख्त कायदे-कानून हैं इनके डालने और
फंसी हुई हैं उन छेदों में गृहस्थी के  
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महप़फूज़ रखने के  
जहाँ से रिस सकती है
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गंदे-संदे, झूठे-सकरे हाथों
जीवन की समूची तरलता
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और बहू-बेटियों को उन चार दिनों
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बरनी न छूने देने से ही
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बचा रहता है अम्माँ का
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यह अनोखा स्वाद-संसार!
  
युवा कवि-पत्नियों के दोनों बाजू
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सरल-सहज चीजों का जटिलतम मिश्रण
झुके जा रहे हैं बोझ से  
+
सब्जी-दाल से भरी थाली के कोने में
एक में थामे हैं वे बच्चों का बस्ता और टिफिन
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रसीली और चटपटी फांक की शक्ल में  
दूसरे में चक्की पर पिस रहे आटे की पर्ची और बिजली का बिल
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परोस दी जाती है घर की विरासत!
एक हाथ में है सास-ससुर की दवाओं
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और दूसरे में सब्जी का थैला
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उनकी एक आँख से झर रहा है अनवरत मायके से आया कोई पत्र
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चैके में करीने से रखी
और दूसरी में चमक रही है बिटिया की उम्र के साथ बढ़ रही आशंकाएं
+
ये मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित कृतियाँ
उनके एक कान को प्रतीक्षा है घर से बाहर गये युवा कवि के कुशलक्षेम फोन की
+
केवल जायके का बदलाव नहीं  
दूसरा कान तक रहा है स्कूल से लौटने वाली पदचाप की तरफ
+
भरोसा है मध्य वर्ग का
 
+
कि न हो सब्जी घर में भले ही
युवा कवियों की पत्नियों को नहीं मालूम
+
आ सकता है कोई भी आधी रात!
कि दुनिया के किस कोने में छिड़ा हुआ है युद्ध
+
या गैरबराबरी की साज़िशें रची जा रही हैं कहाँ
+
कि इस समूची रचनाधर्मिता को असल ख़तरा है किससे
+
या कि कैसा होगा इस सदी का चेहरा नये संदर्भों में  
+
वे तो इससे भी बेख़बर कि उनके इस अज्ञान की
+
उड़ाई जा रही है खिल्ली इस समय युवा कवियों द्वारा शराब पीते हुए
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मानवता की कराह से नावाकिपफ उनकी अंगुलियां फंसी हुई है
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रथ के पहियों की टूटी हुई धुरी में.
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16:27, 21 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

अचार की बरनी
जिसके ढक्कन पर कसा हुआ था कपड़ा

ललचाता मन कि
एक फाँक स्वाद भरी
रख लें मुँह में की कोशिश पर
पारा अम्माँ का सातवें आसमान पर
भन्नाती हुई सुनाती सजा फाँसी की
जो अपील के बाद तब्दील हो जाती
कान उमेठ कर चैके से बाहर कर देने में.

आम, गोभी, नींबू, गाजर, मिर्च, अदरक और आँवला
फलते हैं मानो बरनीस्थ होने को
राई, सरसों, तेल, नमक, मिर्च और हींग-सिरके
का वह अभ्यस्त अनुपात
बचाए रखता स्वाद बरनी की तली दिखने तक .

सख्त कायदे-कानून हैं इनके डालने और
महप़फूज़ रखने के
गंदे-संदे, झूठे-सकरे हाथों
और बहू-बेटियों को उन चार दिनों
बरनी न छूने देने से ही
बचा रहता है अम्माँ का
यह अनोखा स्वाद-संसार!

सरल-सहज चीजों का जटिलतम मिश्रण
सब्जी-दाल से भरी थाली के कोने में
रसीली और चटपटी फांक की शक्ल में
परोस दी जाती है घर की विरासत!

चैके में करीने से रखी
ये मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित कृतियाँ
केवल जायके का बदलाव नहीं
भरोसा है मध्य वर्ग का
कि न हो सब्जी घर में भले ही
आ सकता है कोई भी आधी रात!