"थारी आंख्यां सांम्ही / नन्द भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंद भारद्वाज |संग्रह=अंधारपख / नं...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
पसरियोड़ी व्है कोसां लग | पसरियोड़ी व्है कोसां लग | ||
भावहीण | भावहीण | ||
− | निस्चै ई | + | निस्चै ई नीं भर सकूं |
थारा बरत्योड़ा सबदां अर संकेतां सूं | थारा बरत्योड़ा सबदां अर संकेतां सूं | ||
आं सूकी तळायां मांय नुंवौ विस्वास | आं सूकी तळायां मांय नुंवौ विस्वास |
15:32, 5 मई 2014 का अवतरण
कित्तौ बेबस
अर खाली हाथ व्हे जावूं
थारी उदास आंख्यां रै सांम्ही
आवतां ई म्हैं
आंख्यां -
जिकी सई सिंझ्या
गिरद चढियोड़ै आभै में ज्यूं
अणथाग सूनौपण लियां
पसरियोड़ी व्है कोसां लग
भावहीण
निस्चै ई नीं भर सकूं
थारा बरत्योड़ा सबदां अर संकेतां सूं
आं सूकी तळायां मांय नुंवौ विस्वास
सुख-सांयत रौ नैहचौ
अर हीयै में हरख
हिबोळा खावतौ --
जांणै क्यूं
सुर तूट जावण पछै
अकारथ व्हे जावै
साज रा सगळा उतार-चढाव
कुण-सा संकेतां
अर सबदां-आखरां बूतै
समझावूं म्हारौ मकसद
जिकौ थारी
भुगत्योड़ी आखी ऊमर
अर अणभव रौ अरक पीयोड़ी
आंख्यां सांम्ही आवतां ई
व्हे जावै साव अबोलौ
अर पांगळौ -
अर इणी अरथ में
खोज है म्हारी कविता
वं नुंवां विस्वासू
स्बद-आखरां री,
जिका
थारी आंख्यां रै सांम्ही
ऊभ सकै !
अगस्त, ’73