"पदावली / भाग-4 / मीराबाई" के अवतरणों में अंतर
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मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा। | मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा। | ||
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।। | आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।। | ||
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− | चालने सखी दही बेचवा | + | चालने सखी दही बेचवा जइंये, ज्या सुंदर वर रमतोरे॥ध्रु०॥ |
प्रेमतणां पक्कान्न लई साथे। जोईये रसिकवर जमतोरे॥१॥ | प्रेमतणां पक्कान्न लई साथे। जोईये रसिकवर जमतोरे॥१॥ | ||
मोहनजी तो हवे भोवो थयो छे। गोपीने नथी दमतोरे॥२॥ | मोहनजी तो हवे भोवो थयो छे। गोपीने नथी दमतोरे॥२॥ | ||
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। रणछोड कुबजाने गमतोरे॥३॥ | मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। रणछोड कुबजाने गमतोरे॥३॥ | ||
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चालो अगमके देस कास देखत डरै। | चालो अगमके देस कास देखत डरै। | ||
वहां भरा प्रेम का हौज हंस केल्यां करै॥ | वहां भरा प्रेम का हौज हंस केल्यां करै॥ | ||
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ओढ़ण लज्जा चीर धीरज कों घांघरो। | ओढ़ण लज्जा चीर धीरज कों घांघरो। | ||
छिमता कांकण हाथ सुमत को मूंदरो॥ | छिमता कांकण हाथ सुमत को मूंदरो॥ | ||
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दिल दुलड़ी दरियाव सांचको दोवडो। | दिल दुलड़ी दरियाव सांचको दोवडो। | ||
उबटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥ | उबटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥ | ||
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कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो। | कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो। | ||
बेसर हरिको नाम चूड़ो चित ऊजणो॥ | बेसर हरिको नाम चूड़ो चित ऊजणो॥ | ||
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पूंची है बिसवास काजल है धरमकी। | पूंची है बिसवास काजल है धरमकी। | ||
दातां इम्रत रेख दयाको बोलणो॥ | दातां इम्रत रेख दयाको बोलणो॥ | ||
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जौहर सील संतोष निरतको घूंघरो। | जौहर सील संतोष निरतको घूंघरो। | ||
बिंदली गज और हार तिलक हरि-प्रेम रो॥ | बिंदली गज और हार तिलक हरि-प्रेम रो॥ | ||
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सज सोला सिणगार पहरि सोने राखड़ीं। | सज सोला सिणगार पहरि सोने राखड़ीं। | ||
सांवलियांसूं प्रीति औरासूं आखड़ी॥ | सांवलियांसूं प्रीति औरासूं आखड़ी॥ | ||
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पतिबरता की सेज प्रभुजी पधारिया। | पतिबरता की सेज प्रभुजी पधारिया। | ||
गावै दासि कर राखिया॥ | गावै दासि कर राखिया॥ | ||
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रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे। मन मोह्यु मारूं मुरलिये॥५॥ | रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे। मन मोह्यु मारूं मुरलिये॥५॥ | ||
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अंगो अंग जई मळीयेरे॥६॥ | मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अंगो अंग जई मळीयेरे॥६॥ | ||
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चालो मन गंगा जमुना तीर। | चालो मन गंगा जमुना तीर। | ||
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गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर। | गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर। | ||
बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर॥ | बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर॥ | ||
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मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर। | मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर। | ||
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर॥ | मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर॥ | ||
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रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु। जीव राग छोडमां गमतोरे॥४॥ | रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु। जीव राग छोडमां गमतोरे॥४॥ | ||
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सामळियो कुब्जाने वरतोरे॥५॥ | मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सामळियो कुब्जाने वरतोरे॥५॥ | ||
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मीरा के प्रभु हरि अबिनासी | मीरा के प्रभु हरि अबिनासी | ||
देस्यूँ प्राण अकोर।। | देस्यूँ प्राण अकोर।। | ||
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8. | 8. | ||
छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥ | छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥ | ||
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मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज। | मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज। | ||
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥ | मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥ | ||
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थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडा रो साज। | थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडा रो साज। | ||
मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥ | मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥ | ||
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झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर। | झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर। | ||
सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर। | सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर। | ||
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येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान॥३॥ | येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान॥३॥ | ||
है मीरा दरसनकुं प्यासी। दरसन दिजोरे महाराज॥४॥ | है मीरा दरसनकुं प्यासी। दरसन दिजोरे महाराज॥४॥ | ||
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− | जसवदा मैय्यां नित सतावे | + | जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां, वाकु भुरकर क्या कहुं मैय्यां॥ध्रु०॥ |
बैल लावे भीतर बांधे। छोर देवता सब गैय्यां॥ जसवदा मैया०॥१॥ | बैल लावे भीतर बांधे। छोर देवता सब गैय्यां॥ जसवदा मैया०॥१॥ | ||
सोते बालक आन जगावे। ऐसा धीट कनैय्यां॥२॥ | सोते बालक आन जगावे। ऐसा धीट कनैय्यां॥२॥ | ||
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरि लागुं तोरे पैय्यां॥ जसवदा०॥३॥ | मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरि लागुं तोरे पैय्यां॥ जसवदा०॥३॥ | ||
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19. | 19. | ||
− | जाके मथुरा कान्हांनें घागर | + | जाके मथुरा कान्हांनें घागर फोरी, घागरिया फोरी दुलरी मोरी तोरी॥ध्रु०॥ |
ऐसी रीत तुज कौन सिकावे। किलन करत बलजोरी॥१॥ | ऐसी रीत तुज कौन सिकावे। किलन करत बलजोरी॥१॥ | ||
सास हठेली नंद चुगेली। दीर देवत मुजे गारी॥२॥ | सास हठेली नंद चुगेली। दीर देवत मुजे गारी॥२॥ | ||
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जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं॥ | जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं॥ | ||
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं॥ | हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं॥ | ||
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तन मन सुरति संजोइ सीस चरणां धरूं। | तन मन सुरति संजोइ सीस चरणां धरूं। | ||
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं॥ | जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं॥ | ||
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सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं। | सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं। | ||
छोड़ी छोड़ी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ। | छोड़ी छोड़ी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ। | ||
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ॥ | बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ॥ | ||
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हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये। | हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये। | ||
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये॥ | मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये॥ | ||
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22. | 22. | ||
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ईत गोकुल उत मथुरानगरी। बीच जमुनामो बही गवोरी॥२॥ | ईत गोकुल उत मथुरानगरी। बीच जमुनामो बही गवोरी॥२॥ | ||
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चित्त हार गवोरी॥३॥ | मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चित्त हार गवोरी॥३॥ | ||
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24. | 24. | ||
− | जो तुम तोडो पियो मैं नही | + | जो तुम तोडो पियो मैं नही तोडू, तोरी प्रीत तोडी कृष्ण कोन संग जोडू |
॥ध्रु०॥ | ॥ध्रु०॥ | ||
तुम भये तरुवर मैं भई पखिया। तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया॥ जो०॥१॥ | तुम भये तरुवर मैं भई पखिया। तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया॥ जो०॥१॥ |
10:15, 14 मई 2014 के समय का अवतरण
1.
स्याम! मने चाकर राखो जी
गिरधारी लाला! चाकर राखो जी।
चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं।
ब्रिंदाबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।।
चाकरी में दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची।
भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूं बाता सरसी।।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजंती माला।
ब्रिंदाबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।।
हरे हरे नित बाग लगाऊँ, बिच बिच राखूं क्यारी।
सांवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी।
जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी।
हरी भजनकूं साधू आया ब्रिंदाबन के बासी।।
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।।
2.
चालने सखी दही बेचवा जइंये, ज्या सुंदर वर रमतोरे॥ध्रु०॥
प्रेमतणां पक्कान्न लई साथे। जोईये रसिकवर जमतोरे॥१॥
मोहनजी तो हवे भोवो थयो छे। गोपीने नथी दमतोरे॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। रणछोड कुबजाने गमतोरे॥३॥
3.
चालो अगमके देस कास देखत डरै।
वहां भरा प्रेम का हौज हंस केल्यां करै॥
ओढ़ण लज्जा चीर धीरज कों घांघरो।
छिमता कांकण हाथ सुमत को मूंदरो॥
दिल दुलड़ी दरियाव सांचको दोवडो।
उबटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥
कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो।
बेसर हरिको नाम चूड़ो चित ऊजणो॥
पूंची है बिसवास काजल है धरमकी।
दातां इम्रत रेख दयाको बोलणो॥
जौहर सील संतोष निरतको घूंघरो।
बिंदली गज और हार तिलक हरि-प्रेम रो॥
सज सोला सिणगार पहरि सोने राखड़ीं।
सांवलियांसूं प्रीति औरासूं आखड़ी॥
पतिबरता की सेज प्रभुजी पधारिया।
गावै दासि कर राखिया॥
4.
चालो ढाकोरमा जइज वसिये। मनेले हे लगाडी रंग रसिये॥ध्रु०॥
प्रभातना पोहोरमा नौबत बाजे। अने दर्शन करवा जईये॥१॥
अटपटी पाघ केशरीयो वाघो। काने कुंडल सोईये॥२॥
पिवळा पितांबर जर कशी जामो। मोतन माळाभी मोहिये॥३॥
चंद्रबदन आणियाळी आंखो। मुखडुं सुंदर सोईये॥४॥
रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे। मन मोह्यु मारूं मुरलिये॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अंगो अंग जई मळीयेरे॥६॥
5.
चालो मन गंगा जमुना तीर।
गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर।
बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर॥
मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर॥
6.
चालो सखी मारो देखाडूं। बृंदावनमां फरतोरे॥ध्रु०॥
नखशीखसुधी हीरानें मोती। नव नव शृंगार धरतोरे॥१॥
पांपण पाध कलंकी तोरे। शिरपर मुगुट धरतोरे॥२॥
धेनु चरावे ने वेणू बजावे। मन माराने हरतोरे॥३॥
रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु। जीव राग छोडमां गमतोरे॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सामळियो कुब्जाने वरतोरे॥५॥
7.
तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।
हम चितवत तुम चितवत नाहीं
मन के बड़े कठोर।
मेरे आसा चितनि तुम्हरी
और न दूजी ठौर।
तुमसे हमकूँ एक हो जी
हम-सी लाख करोर।।
कब की ठाड़ी अरज करत हूँ
अरज करत भै भोर।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी
देस्यूँ प्राण अकोर।।
8.
छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥
मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥
थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडा रो साज।
मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥
9.
आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि।
झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति।
झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर।
सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर।
10.
जोसीड़ा ने लाख बधाई रे अब घर आये स्याम॥
आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै सुखधाम।
पांच सखी मिलि पीव परसिकैं आनंद ठामूं ठाम॥
बिसरि गयो दुख निरखि पियाकूं, सुफल मनोरथ काम।
मीराके सुखसागर स्वामी भवन गवन कियो राम॥
11.
झुलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥ध्रु०॥
अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥ गिरि०॥१॥
लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥ गिरि०॥२॥
नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥ गिरि०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकू दंग॥ गिरि०॥४॥
12.
छोडो चुनरया छोडो मनमोहन मनमों बिच्यारो॥धृ०॥
नंदाजीके लाल। संग चले गोपाल धेनु चरत चपल।
बीन बाजे रसाल। बंद छोडो॥१॥
काना मागत है दान। गोपी भये रानोरान।
सुनो उनका ग्यान। घबरगया उनका प्रान।
चिर छोडो॥२॥
मीरा कहे मुरारी। लाज रखो मेरी।
पग लागो तोरी। अब तुम बिहारी।
चिर छोडो॥३॥
13.
जमुनाजीको तीर दधी बेचन जावूं॥ध्रु०॥
येक तो घागर सिरपर भारी दुजा सागर दूर॥१॥
कैसी दधी बेचन जावूं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोर॥ कैसा०॥२॥
येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान॥३॥
है मीरा दरसनकुं प्यासी। दरसन दिजोरे महाराज॥४॥
14.
जमुनामों कैशी जाऊं मोरे सैया। बीच खडा तोरो लाल कन्हैया॥ध्रु०॥
ब्रिदाबनके मथुरा नगरी पाणी भरणा। कैशी जाऊं मोरे सैंया॥१॥
हातमों मोरे चूडा भरा है। कंगण लेहेरा देत मोरे सैया॥२॥
दधी मेरा खाया मटकी फोरी। अब कैशी बुरी बात बोलु मोरे सैया॥३॥
शिरपर घडा घडेपर झारी। पतली कमर लचकया सैया॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाऊ मोरे सैया॥५॥
15.
जल कैशी भरुं जमुना भयेरी॥ध्रु०॥
खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है। बैठ भरुं तो भीजे चुनडी॥१॥
मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे। छुम छुम बाजत मुरली॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चणरकमलकी मैं जेरी॥३॥
16.
जल भरन कैशी जाऊंरे। जशोदा जल भरन॥ध्रु०॥
वाटेने घाटे पाणी मागे मारग मैं कैशी पाऊं॥ज० १॥
आलीकोर गंगा पलीकोर जमुना। बिचमें सरस्वतीमें नहावूं॥ज० २॥
ब्रिंदावनमें रास रच्चा है। नृत्य करत मन भावूं॥ज० ३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हेते हरिगुण गाऊं॥ज० ४॥
17.
जशोदा मैया मै नही दधी खायो॥ध्रु०॥
प्रात समये गौबनके पांछे। मधुबन मोहे पठायो॥१॥
सारे दिन बन्सी बन भटके। तोरे आगे आयो॥२॥
ले ले अपनी लकुटी कमलिया। बहुतही नाच नचायो॥३॥
तुम तो धोठा पावनको छोटा। ये बीज कैसो पायो॥४॥
ग्वाल बाल सब द्वारे ठाडे है। माखन मुख लपटायो॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जशोमती कंठ लगायो॥६॥
18.
जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां, वाकु भुरकर क्या कहुं मैय्यां॥ध्रु०॥
बैल लावे भीतर बांधे। छोर देवता सब गैय्यां॥ जसवदा मैया०॥१॥
सोते बालक आन जगावे। ऐसा धीट कनैय्यां॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरि लागुं तोरे पैय्यां॥ जसवदा०॥३॥
19.
जाके मथुरा कान्हांनें घागर फोरी, घागरिया फोरी दुलरी मोरी तोरी॥ध्रु०॥
ऐसी रीत तुज कौन सिकावे। किलन करत बलजोरी॥१॥
सास हठेली नंद चुगेली। दीर देवत मुजे गारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चितहारी॥३॥
20.
जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन।
रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे।
गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे।
उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे ।
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल जय जय सबद उचारे ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर शरण आया कूं तारे ॥
21.
जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं॥
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं॥
तन मन सुरति संजोइ सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं॥
सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
छोड़ी छोड़ी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ॥
हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये॥
22.
जोगी मेरो सांवळा कांहीं गवोरी॥ध्रु०॥
न जानु हार गवो न जानु पार गवो। न जानुं जमुनामें डुब गवोरी॥१॥
ईत गोकुल उत मथुरानगरी। बीच जमुनामो बही गवोरी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चित्त हार गवोरी॥३॥
24.
जो तुम तोडो पियो मैं नही तोडू, तोरी प्रीत तोडी कृष्ण कोन संग जोडू
॥ध्रु०॥
तुम भये तरुवर मैं भई पखिया। तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया॥ जो०॥१॥
तुम भये गिरिवर मैं भई चारा। तुम भये चंद्रा हम भये चकोरा॥ जो०॥२॥
तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा। तुम भये सोना हम भये स्वागा॥ जो०॥३॥
बाई मीरा कहे प्रभु ब्रज के बासी। तुम मेरे ठाकोर मैं तेरी दासी॥ जो०॥४॥
25.
ज्यानो मैं राजको बेहेवार उधवजी। मैं जान्योही राजको बेहेवार।
आंब काटावो लिंब लागावो। बाबलकी करो बाड॥जा०॥१॥
चोर बसावो सावकार दंडावो। नीती धरमरस बार॥ जा०॥२॥
मेरो कह्यो सत नही जाणयो। कुबजाके किरतार॥ जा०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अद्वंद दरबार॥ जा०॥४॥
26
ज्या संग मेरा न्याहा लगाया। वाकू मैं धुंडने जाऊंगी॥ध्रु०॥
जोगन होके बनबन धुंडु। आंग बभूत रमायोरे॥१॥
गोकुल धुंडु मथुरा धुंडु। धुंडु फीरूं कुंज गलीयारे॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई। शाम मीले ताहां जाऊंरे॥३॥