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"स्थापना / धर्मवीर भारती" के अवतरणों में अंतर

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[नेपथ्य से उद्घोषणा तथा मंच पर नर्त्तक के द्वारा उपयुक्त भावनाट्य का प्रदर्शन। शंख-ध्वनि के साथ पर्दा खुलता है तथा मंगलाचरण के साथ-साथ नर्त्तक नमस्कार-मुद्रा प्रदर्शित करता है। उद्घोषणा के साथ-साथ उसकी मुद्राएँ बदलती जाती हैं।]
 
[नेपथ्य से उद्घोषणा तथा मंच पर नर्त्तक के द्वारा उपयुक्त भावनाट्य का प्रदर्शन। शंख-ध्वनि के साथ पर्दा खुलता है तथा मंगलाचरण के साथ-साथ नर्त्तक नमस्कार-मुद्रा प्रदर्शित करता है। उद्घोषणा के साथ-साथ उसकी मुद्राएँ बदलती जाती हैं।]
                    मंगलाचरण<br>
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मंगलाचरण<br>
        नारायणम् नमस्कृत्य नरम् चैव नरोत्तमम्।<br>
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नारायणम् नमस्कृत्य नरम् चैव नरोत्तमम्।<br>
        देवीम् सरस्वतीम् व्यासम् ततो जयमुदीयरेत्।<br>
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देवीम् सरस्वतीम् व्यासम् ततो जयमुदीयरेत्।<br>
                    उद्घोषणा<br>
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उद्घोषणा<br>
        जिस युग का वर्णन इस कृति में है<br>
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जिस युग का वर्णन इस कृति में है<br>
        उसके विषय में विष्णु-पुराण में कहा है :<br>
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उसके विषय में विष्णु-पुराण में कहा है :<br>
        ततश्चानुदिनमल्पाल्प ह्रास<br>
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ततश्चानुदिनमल्पाल्प ह्रास<br>
        व्यवच्छेददाद्धर्मार्थयोर्जगतस्संक्षयो भविष्यति।’<br>
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व्यवच्छेददाद्धर्मार्थयोर्जगतस्संक्षयो भविष्यति।’<br>
                उस भविष्य में<br>
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उस भविष्य में<br>
                धर्म-अर्थ ह्रासोन्मुख होंगे<br>
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धर्म-अर्थ ह्रासोन्मुख होंगे<br>
                क्षय होगा धीरे-धीरे सारी धरती का।<br>
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क्षय होगा धीरे-धीरे सारी धरती का।<br>
            ‘ततश्चार्थ एवाभिजन हेतु।’<br>
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‘ततश्चार्थ एवाभिजन हेतु।’<br>
                सत्ता होगी उनकी।<br>
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सत्ता होगी उनकी।<br>
                जिनकी पूँजी होगी।<br>
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जिनकी पूँजी होगी।<br>
            ‘कपटवेष धारणमेव महत्त्व हेतु।’<br>
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‘कपटवेष धारणमेव महत्त्व हेतु।’<br>
                जिनके नकली चेहरे होंगे<br>
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जिनके नकली चेहरे होंगे<br>
                केवल उन्हें महत्त्व मिलेगा।<br>
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केवल उन्हें महत्त्व मिलेगा।<br>
            ‘एवम् चाति लुब्धक राजा<br>
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‘एवम् चाति लुब्धक राजा<br>
        सहाश्शैलानामन्तरद्रोणीः प्रजा संश्रियष्यवन्ति।’<br>
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सहाश्शैलानामन्तरद्रोणीः प्रजा संश्रियष्यवन्ति।’<br>
                राजशक्तियाँ लोलुप होंगी,<br>
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राजशक्तियाँ लोलुप होंगी,<br>
                जनता उनसे पीड़ित होकर<br>
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जनता उनसे पीड़ित होकर<br>
                गहन गुफाओं में छिप-छिप कर दिन काटेगी।<br>
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गहन गुफाओं में छिप-छिप कर दिन काटेगी।<br>
      (गहन गुफाएँ वे सचमुच की या अपने कुण्ठित अंतर की)<br>
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(गहन गुफाएँ वे सचमुच की या अपने कुण्ठित अंतर की)<br>
 
[गुफाओं में छिपने की मुद्रा का प्रदर्शन करते-करते नर्त्तक नेपथ्य में चला जाता है।]<br>
 
[गुफाओं में छिपने की मुद्रा का प्रदर्शन करते-करते नर्त्तक नेपथ्य में चला जाता है।]<br>
 
युद्धोपरान्त,<br>
 
युद्धोपरान्त,<br>
    यह अन्धा युग अवतरित हुआ<br>
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यह अन्धा युग अवतरित हुआ<br>
    जिसमें स्थितियाँ, मनोवृत्तियाँ, आत्माएँ सब विकृत हैं<br>
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जिसमें स्थितियाँ, मनोवृत्तियाँ, आत्माएँ सब विकृत हैं<br>
        है एक बहुत पतली डोरी मर्यादा की<br>
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है एक बहुत पतली डोरी मर्यादा की<br>
        पर वह भी उलझी है दोनों ही पक्षों में<br>
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पर वह भी उलझी है दोनों ही पक्षों में<br>
          सिर्फ कृष्ण में साहस है सुलझाने का<br>
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सिर्फ कृष्ण में साहस है सुलझाने का<br>
          वह है भविष्य का रक्षक, वह है अनासक्त<br>
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वह है भविष्य का रक्षक, वह है अनासक्त<br>
          पर शेष अधिकतर हैं अन्धे<br>
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पर शेष अधिकतर हैं अन्धे<br>
          पथभ्रष्ट, आत्महारा, विगलित<br>
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पथभ्रष्ट, आत्महारा, विगलित<br>
          अपने अन्तर की अन्धगुफाओं के वासी<br>
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अपने अन्तर की अन्धगुफाओं के वासी<br>
                यह कथा उन्हीं अन्धों की है; <br>
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यह कथा उन्हीं अन्धों की है; <br>
 
या कथा ज्योति की है अन्धों के माध्यम से<br>
 
या कथा ज्योति की है अन्धों के माध्यम से<br>

21:55, 12 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण

[नेपथ्य से उद्घोषणा तथा मंच पर नर्त्तक के द्वारा उपयुक्त भावनाट्य का प्रदर्शन। शंख-ध्वनि के साथ पर्दा खुलता है तथा मंगलाचरण के साथ-साथ नर्त्तक नमस्कार-मुद्रा प्रदर्शित करता है। उद्घोषणा के साथ-साथ उसकी मुद्राएँ बदलती जाती हैं।] मंगलाचरण
नारायणम् नमस्कृत्य नरम् चैव नरोत्तमम्।
देवीम् सरस्वतीम् व्यासम् ततो जयमुदीयरेत्।
उद्घोषणा
जिस युग का वर्णन इस कृति में है
उसके विषय में विष्णु-पुराण में कहा है :
ततश्चानुदिनमल्पाल्प ह्रास
व्यवच्छेददाद्धर्मार्थयोर्जगतस्संक्षयो भविष्यति।’
उस भविष्य में
धर्म-अर्थ ह्रासोन्मुख होंगे
क्षय होगा धीरे-धीरे सारी धरती का।
‘ततश्चार्थ एवाभिजन हेतु।’
सत्ता होगी उनकी।
जिनकी पूँजी होगी।
‘कपटवेष धारणमेव महत्त्व हेतु।’
जिनके नकली चेहरे होंगे
केवल उन्हें महत्त्व मिलेगा।
‘एवम् चाति लुब्धक राजा
सहाश्शैलानामन्तरद्रोणीः प्रजा संश्रियष्यवन्ति।’
राजशक्तियाँ लोलुप होंगी,
जनता उनसे पीड़ित होकर
गहन गुफाओं में छिप-छिप कर दिन काटेगी।
(गहन गुफाएँ वे सचमुच की या अपने कुण्ठित अंतर की)
[गुफाओं में छिपने की मुद्रा का प्रदर्शन करते-करते नर्त्तक नेपथ्य में चला जाता है।]
युद्धोपरान्त,
यह अन्धा युग अवतरित हुआ
जिसमें स्थितियाँ, मनोवृत्तियाँ, आत्माएँ सब विकृत हैं
है एक बहुत पतली डोरी मर्यादा की
पर वह भी उलझी है दोनों ही पक्षों में
सिर्फ कृष्ण में साहस है सुलझाने का
वह है भविष्य का रक्षक, वह है अनासक्त
पर शेष अधिकतर हैं अन्धे
पथभ्रष्ट, आत्महारा, विगलित
अपने अन्तर की अन्धगुफाओं के वासी
यह कथा उन्हीं अन्धों की है;
या कथा ज्योति की है अन्धों के माध्यम से