Changes

और मन टटोलने का क़ायदा अब भी उतना प्रचलित नहीं
लाखों वर्षो में मनुष्‍य के मस्तिष्‍क का विकास इस दिशा में बेकार ही गया है
 
जब भी
नाभि से दाना चुगती है होठों की चिडिया
तो डबडबा जाती हैं उसकी आँखें
कुछ प्रेम कुछ पछतावे से
 
 
प्राक्-ऐतिहासिक तथ्‍य की तरह याद आता है कि यह भी एक मनुष्‍य ही है
इसे अब प्रेम चाहिए
लानतों से भरा कोई पछतावा नहीं
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits