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"समय का जल / महेश उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
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दोपहर है भीड़ का जंगल | दोपहर है भीड़ का जंगल | ||
थाह तक छूने नहीं देता | थाह तक छूने नहीं देता | ||
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15:55, 21 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
थाह तक छूने नहीं देता
समय का जल
इस तरह दम घोंटती है
ये परिस्थितियाँ
बदल जाती हैं
सुबह से पूर्व ही तिथियाँ
दोपहर है भीड़ का जंगल
थाह तक छूने नहीं देता
समय का जल ।