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04:19, 7 सितम्बर 2014 का अवतरण
ये अनजान नदी की नावें
रचनाकार: धर्मवीर भारती
ये अनजान नदी की नावें जादू के-से पाल उड़ाती आती मंथर चाल।
नीलम पर किरनों की साँझी एक न डोरी एक न माँझी , फिर भी लाद निरन्तर लाती सेंदुर और प्रवाल!
कुछ समीप की कुछ सुदूर की, कुछ चन्दन की कुछ कपूर की, कुछ में गेरू, कुछ में रेशम कुछ में केवल जाल।
ये अनजान नदी की नावें जादू के-से पाल उड़ाती आती मंथर चाल ।