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प्रिय गान नहीं गा सका तो</div>
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ये अनजान नदी की नावें</div>
  
 
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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रचनाकार: [[धर्मवीर भारती]]
 
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यदि मैं तुम्हारे प्रिय गान नहीं गा सका तो
+
ये अनजान नदी की नावें
मुझे तुम एक दिन छोड़ चले जाओगे
+
जादू के-से पाल
 +
उड़ाती
 +
आती
 +
मंथर चाल।
  
एक बात जानता हूँ मैं कि तुम आदमी हो
+
नीलम पर किरनों
जैसे हूँ मैं जो कुछ हूँ तुम वैसे वही हो
+
की साँझी
अन्तर है तो भी बड़ी एकता है
+
एक न डोरी
मन यह वह दोनों देखता है
+
एक न माँझी ,
भूख प्यास से जो कभी कही कष्ट पाओगे
+
फिर भी लाद निरन्तर लाती
तो अपने से आदमी को ढूंढ़ सुना आओगे
+
सेंदुर और प्रवाल!
  
प्यार का प्रवाह जब किसी दिन आता है
+
कुछ समीप की
आदमी समूह में अकेला अकुलाता है
+
कुछ सुदूर की,
किसी को रहस्य सौंप देता है
+
कुछ चन्दन की
उसका रहस्य आप लेता है
+
कुछ कपूर की,
ऎसे क्षण प्यार की ही चर्चा करोगे और
+
कुछ में गेरू, कुछ में रेशम
अर्चा करोगे और सुनोगे सुनाओगे
+
कुछ में केवल जाल।
  
विघ्न से विरोध से कदापि नहीं भागोगे
+
ये अनजान नदी की नावें
विजय के लिए सुख-सेज तुम त्यागोगे
+
जादू के-से पाल
क्योंकि नाड़ियों में वही रक्त है
+
उड़ाती
जो सदैव जीवनानुरक्त है
+
आती
तुमको जिजीविषा उठाएगी, चलाएगी,
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मंथर चाल ।
बढ़ाएगी उसी का गुन गाओगे, गवाओगे
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रचनाकाल : जनवरी, 1957, ’कवि’ में प्रकाशित
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04:19, 7 सितम्बर 2014 का अवतरण

ये अनजान नदी की नावें

रचनाकार: धर्मवीर भारती

Kk-poem-border-1.png

ये अनजान नदी की नावें जादू के-से पाल उड़ाती आती मंथर चाल।

नीलम पर किरनों की साँझी एक न डोरी एक न माँझी , फिर भी लाद निरन्तर लाती सेंदुर और प्रवाल!

कुछ समीप की कुछ सुदूर की, कुछ चन्दन की कुछ कपूर की, कुछ में गेरू, कुछ में रेशम कुछ में केवल जाल।

ये अनजान नदी की नावें जादू के-से पाल उड़ाती आती मंथर चाल ।