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"ठहरा हुआ एहसास. / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर
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बंध जाना ज़ंजीरों से मृदुल धागों में | बंध जाना ज़ंजीरों से मृदुल धागों में | ||
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09:57, 3 जनवरी 2008 का अवतरण
एक एक बीता हुआ क्षण
हाँ
पलों मे फासला तय करके वर्षो का
सिमट आता है सिहरनो में
बंध जाना ज़ंजीरों से मृदुल धागों में
सिर्फ़ इक जगमगाहट,
कितनी ज़्यादा तेज १०० मर्करी की रोशनियों से
कि
हर वाक्य को पढ़ना ही नहीं सुनना भी आसान
कितनी बरसातें आकर गई
अभी तक मिटा नहीं नंगे पावों का एक भी निशान
क्या इतने दिनों में किसी ने छुआ नहीं
बैठा भी नहीं कोई?
अभी भी दूब
वही दबी है जहाँ टिकाई थी, हथेलियाँ, हमने.