Changes

गुरिल्ला / अनिल जनविजय

12 bytes added, 07:17, 21 अक्टूबर 2014
तुम्हारे खेत जोते जा रहे हैं
जोतने दो
उनमें बीज़ बीज डाले जा रहे हैं
डालने दो
अंकुर फूट गए हैं
देखते रहो
फसल फ़सल बढ़ रही है
इन्तज़ार करो
फसल फ़सल पक गई है
हथियार तेज़ करो
फसल फ़सल कट रही है
तैयार हो जाओ
फसल फ़सल गाड़ी पर लाद दी गई है
कूद पड़ो, वार करो
उनकी लाशें बिछा दो
यह फसल फ़सल तुम्हारी है
तुम्हारे खेत की
अब ये खेत भी तुम्हारे हैं।हैं ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,282
edits