भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हुआ प्रवासी / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
घर-घर चर्चा | घर-घर चर्चा | ||
हुई गाँव में - | हुई गाँव में - | ||
− | + | क्या खोया, क्या किसने पाया? | |
समय जुआरी | समय जुआरी | ||
पंक्ति 44: | पंक्ति 44: | ||
अब | अब | ||
हुआ रास्ता | हुआ रास्ता | ||
− | + | अमरीका से गांव का? | |
</poem> | </poem> |
12:29, 30 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण
हुआ प्रवासी
गंगावासी
अब
कितना घर का, गाँव का
कॉलेज टॉप
किया ज्यों ही
वह गया गाँव से अमरीका
जाते ही तब
छूट गया सब-
आँचल, राखी, रोली-टीका
बिना आसरे
घर
बूढा बापू
कभी धूप का, छाँव का !
अंतिम सांस
भरी बापू ने
क्रिया-करम को पैसा आया
घर-घर चर्चा
हुई गाँव में -
क्या खोया, क्या किसने पाया?
समय जुआरी
बैठा है
फड़ पर
सब कुछ उसके दाँव का !
दाम कमाया
नाम कमाया
बड़े दिनों से गाँव न आया
भीतर-बाहर
खोज रही माँ
अपनों में अपनों की छाया
क्या दूर बहुत
अब
हुआ रास्ता
अमरीका से गांव का?