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"बोल मजूरे हल्ला बोल / कांतिमोहन 'सोज़'" के अवतरणों में अंतर

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00:29, 18 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

बोल मजूरे हल्ला बोल
काँप रही सरमाएदारी खुलके रहेगी इसकी पोल
बोल मजूरे हल्ला बोल !
 
ख़ून को अपने बना पसीना तूने बाग लगाया है
कुँए खोदे नहर निकाली ऊँचा महल उठाया है
चट्‌टानों में फूल खिलाए शहर बसाए जंगल में
अपने चौड़े कन्धों पर दुनिया को यहाँ तक लाया है,
बाँकी फौज कमेरों की है, तू है नही भेड़ों का गोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !
 
गोदामों में माल भरा है, नोट भरे हैं बोरों में
बेहोशों को होश नही है, नशा चढ़ा है जोरों में
इसका दामन उसने फाड़ा उसका गरेबाँ इसके हाथ
कफनखसोटों का झगड़ा है होड़ लगी है चोरों में
ऐसे में तू हाँक लगा दे ला मेरी मेहनत का मोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !
 
सिहर उठेगी लहर नदी की, दहक उठेगी फुलवारी
काँप उठेगी पत्ती-पत्ती, चटखेगी डारी डारी,
सरमाएदारों का पल में नशा हिरन हो जाएगा
आग लगेगी नंदन वन में सुलग उठेगी हर क्यारी
सुन-सुनकर तेरे नारों को धरती होगी डावाँडोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !

रचनाकाल : मार्च 1982