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"उम्र के छाले / जेन्नी शबनम" के अवतरणों में अंतर

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('1. उम्र की भट्टी अनुभव के भुट्टे मैंने पकाए । 2. जग ने द...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
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मैंने ही काटी ।
 
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16:59, 3 दिसम्बर 2014 का अवतरण

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1. उम्र की भट्टी अनुभव के भुट्टे मैंने पकाए । 2. जग ने दिया सुकरात -सा विष मैंने जो पिया । 3. मैंने उबाले इश्क़ की केतली में उम्र के छाले । 4. मैंने जो देखा अमावस का चाँद तस्वीर खींची । 5. कौन अपना ? मैंने कभी न जाना वे मतलबी । 6. काँच से बना फिर भी मैंने तोड़ा अपना दिल । 7. फूल उगाना मन की देहरी पे मैंने न जाना । 8. कच्चे सपने रोज़ उड़ाए मैंने पास न डैने । 9. सपने पैने ज़ख़्म देते गहरे, मैंने ही छोड़े । 10. नहीं जलाया मैंने प्रीत का चूल्हा ज़िन्दगी सीली ।

11. मैंने जी लिया जाने किसका हिस्सा कर्ज़ का किस्सा । 12. मैंने ही बोई तजुर्बों की फ़सलें मैंने ही काटी । -0- </poem>