"आदमी का नशा / सईददुद्दीन" के अवतरणों में अंतर
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दो शराबी दरख़्त | दो शराबी दरख़्त |
21:04, 13 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
दो शराबी दरख़्त
अपना बड़ा सर हिला हिला कर झूम रहे हैं
सूरज के जाम से
आज उन्होंने
कुछ ज़्यादा ही चढ़ा ली है
अब वो
अपनी शाख़ों में बैठे
परिंदों की चहकार से ज़्यादा
सड़क पर चलते ट्रैफिक के शोर को
इंहिमाक से सुन रहे हैं
दोनों शराब दरख़्त
जड़ों समेत
सड़क पर आ गिरे हैं
ट्रैफ़िक जाम हो जाता है
बसें, कारें
स्कूटर और साइकलें रूक जाती हैं
हॉर्न बजना शुरूअ हो जाते हैं
मगर नशे में धुत दरख़्त
जड़ों समेत
सड़क के बीचों बीच पड़े हैं
मैं ने दरख़्त से एक शाख़ तोड़ी
और सारी रात
अपने आस पास रेंगने वाली कीड़ों को
मारने में गुज़ार दी
सुब्ह दूसरे कीड़ों के साथ साथ
मुझे उस की लाश अपने पैरों के आस पास ही मिल
जिस के हुक्म पर मैं ने अपनी मश्कीज़े का पानी
रेत पर गिरा दिया था
और नंगे पैर उस के पीछे हो लिया था
शायद मैं ने अंधेरे में
दरख़्त की शाख़ से उसे भी कुचल दिया था
मैं ने दरख़्त को देखा
मगर वहाँ तो सिरे से कोई दरख़्त था ही नहीं
मैं ने आगे बढ़ने की ठानी
फिर मुझे अंदाज़ा हुआ
कोई मेरे साथ चल रहा है
मैं ने उस मुख़ातिब किया
और उसे मश्कीज़े का पानी ज़ाए करने का हुक्म दिया
और उस के आगे आगे चलने लगा