भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इतिहास रो रहा है / युद्धवीर राणा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
सच ही हैं तुम्हारी सुनी बातें | सच ही हैं तुम्हारी सुनी बातें |
23:11, 25 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
सच ही हैं तुम्हारी सुनी बातें
सच ही हैं तुम्हारी कही बातें
कल एक बूढ़े इतिहास से मैं मिला था,
उस ने भी वही कहा है
जो तुम ने कहा था
वह कहता गया...मैं सुनता गया, सुनता गया...
इतिहास अपनी डायरी खोल कर कह रहा है--
"देखो, इस देश का जब मानचित्र आँका गया
तब तुम्हारे पितामह भी थे
यह सीमा तुम्हारे पितामह की आँकी हुई है
और,वह दूसरी रेखा तुम्हारे पिता की आँकी हुई
चाहे पूर्णिमा के चांद की दमकती चांदनी हो
चाहे अमावस की घनी रात
चाहे पौष-माघ की कँपकँपाती ठंड
चाहे सावन-भादों की बाढ़ उफ़नाती वर्षा
तुम्हारे पितामह यहाँ खड़े होकर संगीन से
आँकते थे मानचित्र
मूल नेपाली से अनुवाद : खड़कराज गिरी