"कवि / विजेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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मेरे लिए कविता रचने का | मेरे लिए कविता रचने का | ||
कोई खास क्षण नहीं । | कोई खास क्षण नहीं । |
09:18, 11 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
मेरे लिए कविता रचने का
कोई खास क्षण नहीं ।
मैं कोई गौरय्या नहीं
जो सूर्योदय और सूर्यास्त पर
घौंसले के लिए
चहचहाना शुरू कर दूँ ।
समय ही ऐसा है
कि मैं जीवन की लय बदलूँ-
छंद और रूपक भी
एक मुक्त संवाद-
आत्मीय क्षणों में कविता ही है
जहाँ मैं-
तुम से कुछ छिपाऊँ नहीं।
सुन्दर चीज़ों को अमरता प्राप्त हो
यही मेरी कामना है
जबकि मनुष्य उच्च लक्ष्य के लिए
प्रेरित रहें !
हर बार मुझे तो खोना ही खोना है
क्योंकि कविता को जीवित रखना
कोई आसान काम नहीं
सिवाय जीवन तप के ।
जो कुछ कविता में छूटता है
मैंने चाहा कि उसे
रंग, बुनावट, रेखाओं और दृश्य-बिंबों में
रच सकूँ ।
धरती उर्वर है
हवा उसकी गंध को धारण कर
मेरे लिए वरदार !
गाओ, गाओ-ओ कवि ऐसा,
जिससे टूटे और निराश लोग
जीवन को जीने योग्य समझें ।
हृदय से उमड़े हुए शब्द
आत्मा का उजास कहते हैं ।