भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सतवाणी (23) / कन्हैया लाल सेठिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:37, 27 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

221.
परम पुरूष सर्वग्य श्री
रामचन्द्र भगवंत,
सोधण सीता नै गयो
पण वानर हणवंत,

222.
डूंगर माथै हिम चढयो
निज नै मान विसेख,
तालामेली लागगी
सूरज सामो देख,

223.
घटै नहीं कोई अघट
भिड़यां ठोठ स्यूं ठोठ,
कद खांगी एरण हुवै
खायां घण री चोट ?

224.
करड़ावण कोनी सवै
कनक जको सौ टंच,
जे चाहीजै हार तो
रळा मांय परपंच,

225.
राम करयो संसै दियो
धण नै झूठो आळ,
हुई भसम निज में अगन
सत नै दियो उजाळ,

226.
हळ स्यूं फाडै़ काळजो
घालै उंडा घाव
खिमावान धरती मिनख
पण तू नुगरो साव,

227.
करै च्यानणो लाय पण
डरपै बीं स्यूं जीव,
लागै गमतो रीत रो
चावै अमरित घीव,

228.
तू जोड़यो प्रभु स्यूं हियो
चिनीक रैगी फांक,
पूरो बैठा जोड़ नै
पाछो सावळ चांक,

229.
मोड़ो आवै रोज तू
कैवै मोड़ो खोल,
जाण बूझ में फेंक दी
चाबी बैठ टंटोल,

230.
कांधै कामळ जेठ में
तनैं सियाळो चीत,
किंयां भूलग्यो मरण नै
मनड़ा म्हारा मीत ?