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मौत !
हां, मौत इज।
इण जगत री अेक
पै’ली, छेहली
आद अर बाद तांईं री
सनातन सांच।
म्हूं देख्यौ है डा’मौं।
जीं नैं लीलगी मौत
सिद्धार्थ देखी बीं नै
अर बुद्ध होग्यौ।
बुद्ध देखतो बा मौत आज तो
जाणूं कांईं बणतौ
पण म्हूं.....म्हूं, डरूं-फरूं
धूज जावै म्हारौ धीजौ
अर म्हूं जोवण ढूकूं
म्हारै अमरत्व रो कोई उपाव
म्हूं क्यूं नीं सोध सक्यौ
इण मौत सूं सिद्धार्थ।
सांच अळगौ क्यूं रे’ग्यौ
म्हां सूं
म्हारै अंतस सूं।