भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अंदेसौ / राजू सारसर ‘राज’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:24, 28 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
थूं जठै बैठयौ है
चवड़ौ होय’र
देवै मूछयां नै बंट
बो कानी है
सोनळ सिंघासण
बो है
बारूद रो ढिगलौ।
मति इतरा
थारी कागदी समझ माथै
परकिरती सूं
राड़ मति पौ’ळा
उण री सगती रो
थनै थौ-मो है’क नीं
नींतर
ज्ञान बायरौ
विज्ञान
कर नाखैलौ
धरती नैं बांझड़ी
जाबक निपूती !