भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हार-जीत / राजू सारसर ‘राज’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:24, 29 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

म्हूँ चावूं
कीं नै कीं बोलूं
वैवसथा रो भेद खोलूं
उणी’ज बगत
चाल पड़ै
म्हारै दिल अर दिमाग मांय
एक अण चिन्त्यौ जुद्ध
दिल सजोरौ डरै कोनी
पण दिमाग निजोरौ हामळ भरै कोनी
कुण जीनै, कुण हारै
स्यात ओ ठाह पडै
जे सबद नीसरे बारै।