भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"म्हारै पांती रा सुपना: दोय / राजू सारसर ‘राज’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:25, 29 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
आंख्यां रै खूंजै में
संजोय’र मेल्या
घणां ई सोवणां
मन-मोवणां
की सुपना
म्हैं म्हारै पांती रा
कांई पण ठाह हो
गळगळा वैय’र
टळक जावैला
आंसूडां रै मिस
धार बण’र
फगत लगोलग
बधती किणीं री
नाक रै नांव
अर समाज ररी
बां पिछौकड़ी रीतां सारू
जकी सईकां सूं पडी है
म्हारै पगां में
बेड्यां ज्यूं।