भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डर ! / राजू सारसर ‘राज’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:38, 29 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

लोगां बिचाळै
पसरग्यौ मेधाबारौ डर
खुटग्यौ विसवास
पगै लागण सारू ई
साम्हीं झुकतां ई
पग खींचै पाछा
इण डर सूं’कै
कठै’ई पगां री
मोचड्यां नीं खींच लेवै
पार कींकर पडै़ली।