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"‘कुण?’ / संजय आचार्य वरुण" के अवतरणों में अंतर

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जीवन रै हरेक छिण ने
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निरखता थकां
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अर कदे कदे
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खुद ने परखतां थकां
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कीं दया रा भाव उमजै
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अपणै आप सारू।
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कदे जीव हुळसै
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के आपां जी रह्यां हां
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कदे उठै टीस
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छिण छिण मर रह्या हां।
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आभौ चुपचाप
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धरती, चोर निजरां सूं देखती
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के सायत उण ने
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पण दोनां रै विचाळै ष्
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नाग आळै ज्यूं
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फण फैलायोड़ौ
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एक सवाल
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एक आडी
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‘कूण?’
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म्हैं मींचली म्हारी आँख्यां
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म्हारै सूं नीं देखीजै
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ओ डरावणौ दरसाव।
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कीं ताळ पछै
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म्हारै कानां में
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गूंजण लाग जावै
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घणौ जोर जोर सूं
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बो ई’ज भयानक प्रष्न
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कूण? कूण? कूण?
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प्रष्न अर उŸार
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आपस में करै घमसांण
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कीं देर तांई
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बाथेड़ौ करतां करतां
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अचाणचक
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चीर’र
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निकळ जावै
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म्हारौ काळजौ।
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म्हैं ओजूं ताई
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संभाळ रह्यौ हूँ
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म्हारा जखम
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म्हारा घाव।
 
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22:40, 25 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण

जीवन रै हरेक छिण ने
निरखता थकां
अर कदे कदे
खुद ने परखतां थकां
कीं दया रा भाव उमजै
अपणै आप सारू।

कदे जीव हुळसै
के आपां जी रह्यां हां
कदे उठै टीस
के आपां तो
छिण छिण मर रह्या हां।

आभौ चुपचाप
गूंगौ हुयोड़ौ
धरती, चोर निजरां सूं देखती
के सायत उण ने
ठा नी पड़ै
पण दोनां रै विचाळै ष्
नाग आळै ज्यूं
फण फैलायोड़ौ
एक सवाल
एक आडी
‘कूण?’
म्हैं मींचली म्हारी आँख्यां
म्हारै सूं नीं देखीजै
ओ डरावणौ दरसाव।
कीं ताळ पछै
म्हारै कानां में
गूंजण लाग जावै
घणौ जोर जोर सूं
बो ई’ज भयानक प्रष्न
कूण? कूण? कूण?
प्रष्न अर उŸार
आपस में करै घमसांण
कीं देर तांई
बाथेड़ौ करतां करतां
अचाणचक
चीर’र
निकळ जावै
म्हारौ काळजौ।
म्हैं ओजूं ताई
संभाळ रह्यौ हूँ
म्हारा जखम
म्हारा घाव।