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"बदळाव / संजय आचार्य वरुण" के अवतरणों में अंतर

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म्हारै बाग रा फूल
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फगत खिलण री
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लीक पीट रह्या है।
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म्हारै बाग में
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आजकल
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बा शरम सूं
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भेळी नी हुवै।
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भंवरौ रौ गूंजणौ
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अर कोयल री कूक
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जाणें चीसाड्या बणगी है।
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म्है नित रौ देखूं
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के हरेक दिरखत
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आपरी जड़ा
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फैलावण सारू
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लागोड़ौ है
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दूजां री जड़ां काटण में।
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दिनूगै
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चिड्यां, कमेड्यां
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मोर पपैयां ने
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नीं बाच्यौ है
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फालतू बखत
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भोर रौ सुवागत करण खातर।
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म्हारौ मन अळपीजै
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बिना खूसबू रा फूल देख
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अळसीजियोड़ी पत्यां देख
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हर डाळी ने आपरै मायं
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मस्त देख
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पीळै पत्तां रा हौंसला
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पस्त देख।
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म्हरौ जी घमटीजै
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कोयल री
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मांग लायोड़ी बोली सूं
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म्हैं राजी कोनी
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उधार लायोड़ी
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हरियाळी सूं
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म्हनै दाय नी आवै
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हर डाळी रौ
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खुद ने
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पूरौ पेड़ समझणौ
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ठीक नीं लागै
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म्हनै बेल्यां रौ
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बिना नीचै देख्यां
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ऊपर चढ़णौ।
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म्हनै घणौ
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घणौ अखरै
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बाग में
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हरेक रौ
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आप मत्तै चालणौ।
 
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23:00, 25 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण

म्हारै बाग रा फूल
लारलै लाम्बै बखत सूं
फगत खिलण री
लीक पीट रह्या है।

म्हारै बाग में
आजकल
काची कळ्यां नीं हुवै
डाळी सूं निकळै
पूरौ रौ पूरौ फूल।

अठै रा
सूरजमुखी अबै
सूरज रै
आणै जाणै रौ
‘टेंषन’ नीं पाळै।

अठै री
छुई मुई रौ तो
कैवणौ ही क्या
इण ने छूवौ तो छूवौ
दोनूं हाथां सूं झाललो
बा शरम सूं
भेळी नी हुवै।

भंवरौ रौ गूंजणौ
अर कोयल री कूक
जाणें चीसाड्या बणगी है।
म्है नित रौ देखूं
के हरेक दिरखत
आपरी जड़ा
फैलावण सारू
लागोड़ौ है
दूजां री जड़ां काटण में।
दिनूगै
चिड्यां, कमेड्यां
मोर पपैयां ने
नीं बाच्यौ है
फालतू बखत
भोर रौ सुवागत करण खातर।
म्हारौ मन अळपीजै
बिना खूसबू रा फूल देख
अळसीजियोड़ी पत्यां देख
हर डाळी ने आपरै मायं
मस्त देख
पीळै पत्तां रा हौंसला
पस्त देख।
म्हरौ जी घमटीजै
कोयल री
मांग लायोड़ी बोली सूं
म्हैं राजी कोनी
उधार लायोड़ी
हरियाळी सूं
म्हनै दाय नी आवै
हर डाळी रौ
खुद ने
पूरौ पेड़ समझणौ
ठीक नीं लागै
म्हनै बेल्यां रौ
बिना नीचै देख्यां
ऊपर चढ़णौ।
म्हनै घणौ
घणौ अखरै
बाग में
हरेक रौ
आप मत्तै चालणौ।