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"रात के मुसाफिर / पीयूष मिश्रा" के अवतरणों में अंतर
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पोटली में तेरी हो आग ना संभल के - (२) | पोटली में तेरी हो आग ना संभल के - (२) | ||
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रात के मुसाफिर.... | रात के मुसाफिर.... | ||
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जान ले अँधेरे के सर पे ख़ून चढ़ा है - (२) | जान ले अँधेरे के सर पे ख़ून चढ़ा है - (२) | ||
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इंसान के शहर में इंसान खोज ले तू | इंसान के शहर में इंसान खोज ले तू | ||
− | देख तेरी ठोकर से | + | |
− | राह का वो पत्थर | + | देख तेरी ठोकर से, राह का वो पत्थर |
− | माथे पे तेरे कस के | + | |
− | लग जाये ना उछल के | + | माथे पे तेरे कस के लग जाये ना उछल के |
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हो, रात के मुसाफिर.... | हो, रात के मुसाफिर.... | ||
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− | माना की तूने... हाँ, हाँ | + | माना की जो हुआ है, वो तूने भी किया है |
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+ | इन्होंने भी किया है, उन्होंने भी किया है | ||
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+ | माना की तूने... हाँ, हाँ, चाहा नहीं था लेकिन | ||
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तू जानता नहीं कि ये कैसे हो गया है | तू जानता नहीं कि ये कैसे हो गया है | ||
− | लेकिन तू फिर भी सुनले | + | |
− | नहीं सुनेगा कोई | + | लेकिन तू फिर भी सुनले, नहीं सुनेगा कोई |
− | तुझे ये सारी दुनिया | + | |
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हो, रात के मुसाफिर तू भागना संभल के | हो, रात के मुसाफिर तू भागना संभल के | ||
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पोटली में तेरी हो आग ना संभल के | पोटली में तेरी हो आग ना संभल के |
13:09, 2 मार्च 2015 के समय का अवतरण
हो, रात के मुसाफिर तू भागना संभल के
पोटली में तेरी हो आग ना संभल के - (२)
रात के मुसाफिर....
चल तो तू पड़ा है, फासला बड़ा है
जान ले अँधेरे के सर पे ख़ून चढ़ा है - (२)
मुकाम खोज ले तू, मकान खोज ले तू
इंसान के शहर में इंसान खोज ले तू
देख तेरी ठोकर से, राह का वो पत्थर
माथे पे तेरे कस के लग जाये ना उछल के
हो, रात के मुसाफिर....
माना की जो हुआ है, वो तूने भी किया है
इन्होंने भी किया है, उन्होंने भी किया है
माना की तूने... हाँ, हाँ, चाहा नहीं था लेकिन
तू जानता नहीं कि ये कैसे हो गया है
लेकिन तू फिर भी सुनले, नहीं सुनेगा कोई
तुझे ये सारी दुनिया खा जाएगी निगल के - (२)
हो, रात के मुसाफिर तू भागना संभल के
पोटली में तेरी हो आग ना संभल के