लेकिन वह जवान औरत जो दफ़नाई गई शहर में
वह रहने वाली थी सौ किलोमीटर दूर आगे कहीं की
वह बना देती है घेरे को और बड़ा
और वह अकेला शख़्स जो समुन्दर पार किसी देश के सुदूर किनारों पर
उसकी मृत्यु का शोक कर रह था - समूचे संसार को ले लेता है इस घेरे में
'''इस कविता का अनुवाद : अशोक पांडे''' {{KKGlobal}}{{KKAnooditRachna|रचनाकार=येहूदा आमिखाई|संग्रह=आँखों की उदासी और एक सफ़र / येहूदा आमिखाई}}[[Category:यहूदी भाषा]]पिता की बरसी पर अपने पिता की बरसी पर मैं गया उनके साथियों को देखनेजो दफनाये गए थे उन्हीं के साथ एक कतार मेंयही थी उनके जीवन के स्नातक कक्षा मुझे याद है उनमें से अधिकतर के नामजैसे कि पिता को अपने बच्चे को स्कूल से घर लेट हुए याद रहते हैंउसके दोस्तो के नाम मेरे पिता अब भी मुझसे प्यार करते हैं और मैं तो हमेशा ही करता हूँ उनसेइसीलिये मैं कभी रोता नहीं उनके लिएलेकिन यहाँ इस जगह का मान रखने की खातिर ही सहीमैं ला चुका हूँ थोड़ी सी रुलाई अपनी आंखों मेंएक नजदीकी कब्र देख कर - एक बच्चे की कब्र" हमारा नन्हां योसी जब मरा चार साल का था।