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− | + | आपके पैर ठोकर मारते हैं मुझे | |
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− | + | आप बेवकूफ़ हैं क्या | |
− | + | क्या आँखें नहीं हैं आपके | |
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− | + | आपके चलने से जो धूल उड़ रही है | |
+ | आपकी नज़रों से बचा रही है मुझे | ||
+ | जैसे ही दिखाई पड़ूँगा मैं | ||
+ | वह सब कुछ आपका होगा | ||
+ | जो मेरे भीतर छिपा है | ||
− | + | मेरे मालिक को ढूँढ़ने की ज़रूरत नहीं | |
− | + | मैंने स्वयं ही गिराया है ख़ुद को धरती पर | |
− | + | यह मत सोचिए कि मज़ाक है यह | |
− | + | जैसे ही झुकेंगे आप मुझे उठाने | |
+ | कोई धागा खींच लेगा | ||
+ | और हँसेंगे बच्चे आपके ऊपर | ||
− | + | कि देखो, कितना मूर्ख बनाया | |
− | + | आप डरें नहीं | |
− | + | कि स्त्रियाँ खड़ी होंगी खिड़की पर | |
− | + | आपको झुकते देख मुस्कराएँगी वे | |
+ | और आपको शर्म से लाल होना पड़ेगा | ||
− | + | नहीं, मैं धोखा नहीं हूँ अँधेरे का | |
− | + | वास्तविकता हूँ | |
− | + | कृपया रुकिए एक क्षण को | |
− | + | उठाइए मुझे | |
+ | और देखिए कि मेरे भीतर क्या है | ||
− | + | मैं नाराज़ हूँ आपसे | |
− | और | + | और डरता हूँ सिर्फ़ इस बात से |
− | + | कि अभी, बिल्कुल अभी | |
− | + | इस भरी दोपहरी में | |
− | + | मुझे देख लेगा कोई अज़नबी | |
− | + | वह व्यक्ति नहीं, जिसकी मुझे प्रतीक्षा है | |
− | + | बल्कि वह, जिसे मेरी ज़रूरत नहीं | |
− | + | वह झुकेगा और मुझे उठा लेगा | |
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23:04, 30 मार्च 2015 के समय का अवतरण
मैं बटुआ हूँ
भरी दोपहरी
पड़ा हूँ सड़क पर अकेला
क्या आप लोगों को दिखाई नहीं देता मैं
आपके पैर ठोकर मारते हैं मुझे
और गुज़र जाते हैं मेरे निकट से
आप बेवकूफ़ हैं क्या
क्या आँखें नहीं हैं आपके
बटन हैं
आपके चलने से जो धूल उड़ रही है
आपकी नज़रों से बचा रही है मुझे
जैसे ही दिखाई पड़ूँगा मैं
वह सब कुछ आपका होगा
जो मेरे भीतर छिपा है
मेरे मालिक को ढूँढ़ने की ज़रूरत नहीं
मैंने स्वयं ही गिराया है ख़ुद को धरती पर
यह मत सोचिए कि मज़ाक है यह
जैसे ही झुकेंगे आप मुझे उठाने
कोई धागा खींच लेगा
और हँसेंगे बच्चे आपके ऊपर
कि देखो, कितना मूर्ख बनाया
आप डरें नहीं
कि स्त्रियाँ खड़ी होंगी खिड़की पर
आपको झुकते देख मुस्कराएँगी वे
और आपको शर्म से लाल होना पड़ेगा
नहीं, मैं धोखा नहीं हूँ अँधेरे का
वास्तविकता हूँ
कृपया रुकिए एक क्षण को
उठाइए मुझे
और देखिए कि मेरे भीतर क्या है
मैं नाराज़ हूँ आपसे
और डरता हूँ सिर्फ़ इस बात से
कि अभी, बिल्कुल अभी
इस भरी दोपहरी में
मुझे देख लेगा कोई अज़नबी
वह व्यक्ति नहीं, जिसकी मुझे प्रतीक्षा है
बल्कि वह, जिसे मेरी ज़रूरत नहीं
वह झुकेगा और मुझे उठा लेगा