"हृदय-वेेदना / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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हृदय-वेदना मधुर मूर्ति तब सदा नवीन बनाती है | हृदय-वेदना मधुर मूर्ति तब सदा नवीन बनाती है | ||
− | तुम्हें न पाकर भी छाया में अपना दिवस | + | तुम्हें न पाकर भी छाया में अपना दिवस बिताती है |
कभी समझकर रूष्ट तुम्हें वह करके विनय मनाती है | कभी समझकर रूष्ट तुम्हें वह करके विनय मनाती है | ||
− | तिरछी चितवन भी पा करके तुरत तुष्ट हो | + | तिरछी चितवन भी पा करके तुरत तुष्ट हो जाती है |
− | + | जब तुम सदय नवल नीरद से मन-पट पर छा जाते हो | |
− | पीड़ास्थल पर | + | पीड़ास्थल पर शीतल बनकर तब आँसू बरसाते हो |
मूर्ति तुम्हारी सदय और निर्दय दोनो ही भाती है | मूर्ति तुम्हारी सदय और निर्दय दोनो ही भाती है | ||
− | किसी भाँति भी पा जाने पर तुमको | + | किसी भाँति भी पा जाने पर तुमको यह सुख पाती है |
कभी-कभी हो ध्यान-वंचिता बड़ी विकल हो जाती है | कभी-कभी हो ध्यान-वंचिता बड़ी विकल हो जाती है |
12:16, 2 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
सुनो प्राण-प्रिय, हृदय-वेदना विकल हुई क्या कहती है
तव दुःसह यह विरह रात-दिन जैसे सुख से सहती है
मै तो रहता मस्त रात-दिन पाकर यही मधुर पीड़ा
वह होकर स्वच्छन्द तुम्हारे साथ किया करती क्रीड़ा
हृदय-वेदना मधुर मूर्ति तब सदा नवीन बनाती है
तुम्हें न पाकर भी छाया में अपना दिवस बिताती है
कभी समझकर रूष्ट तुम्हें वह करके विनय मनाती है
तिरछी चितवन भी पा करके तुरत तुष्ट हो जाती है
जब तुम सदय नवल नीरद से मन-पट पर छा जाते हो
पीड़ास्थल पर शीतल बनकर तब आँसू बरसाते हो
मूर्ति तुम्हारी सदय और निर्दय दोनो ही भाती है
किसी भाँति भी पा जाने पर तुमको यह सुख पाती है
कभी-कभी हो ध्यान-वंचिता बड़ी विकल हो जाती है
क्रोधित होकर फिर यह हमको प्रियतम ! बहुत सताती है
इसे तम्हारा एक सहारा, किया करो इससे क्रीड़ा
मैं तो तुमको भूल गया हूँ पाकर प्रेममयी पीड़ा