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"पंचमुख गुड़हल / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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पंचमुख गुड़हल के फूल को | पंचमुख गुड़हल के फूल को | ||
− | बांधते रहो | + | बांधते रहो नीरव— |
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साँझ के सन्नाटे में मैं | साँझ के सन्नाटे में मैं | ||
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सका तो एक धुन | सका तो एक धुन | ||
− | निःशब्द | + | निःशब्द गाऊँगा। |
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रागों की एक आग एक शतजिह्व | रागों की एक आग एक शतजिह्व | ||
− | लहलह सब पर छा | + | लहलह सब पर छा जाएगी। |
दिल, साँझ, शम, कमरा, क्लान्ति | दिल, साँझ, शम, कमरा, क्लान्ति | ||
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डोरे तोड़ सभी | डोरे तोड़ सभी | ||
− | अपनी ही लय में | + | अपनी ही लय में बहाएगी: |
फूल मुक्त, | फूल मुक्त, | ||
− | धरा बंध | + | धरा बंध जायेगी। |
अपने निवेदना का धुआँ बन | अपने निवेदना का धुआँ बन | ||
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अपनी अगरबत्ती-सा | अपनी अगरबत्ती-सा | ||
− | मैं चुक | + | मैं चुक जाऊँगा। |
18:04, 30 मार्च 2008 का अवतरण
शान्त
मेरे सँझाये कमरे,
शान्त
मेर थके-हारे दिल।
मेरी अगरबत्ती के धुएँ के
बलखाते डोरे,
लाल
अंगारे से डह-डह इस
पंचमुख गुड़हल के फूल को
बांधते रहो नीरव—
- जब तक बांधते रहो।
साँझ के सन्नाटे में मैं
सका तो एक धुन
निःशब्द गाऊँगा।
फिर अभी तो वह आएगी:
रागों की एक आग एक शतजिह्व
लहलह सब पर छा जाएगी।
दिल, साँझ, शम, कमरा, क्लान्ति
एक ही हिलोर
डोरे तोड़ सभी
अपनी ही लय में बहाएगी:
फूल मुक्त,
धरा बंध जायेगी।
अपने निवेदना का धुआँ बन
अपनी अगरबत्ती-सा
मैं चुक जाऊँगा।