"अन्धकार में जागने वाले / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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− | रात के अन्धेरे में जो एकाएक जागता है<br> | + | रात के घुप अन्धेरे में जो एकाएक जागता है<br> |
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सुनता है<br> | सुनता है<br> | ||
वह निपट अकेला होता है।<br> | वह निपट अकेला होता है।<br> | ||
अन्धकार में जागनेवाले सभी अकेले होते हैं।<br><br> | अन्धकार में जागनेवाले सभी अकेले होते हैं।<br><br> | ||
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पर जो यों ही सहमी हुई रात में<br> | पर जो यों ही सहमी हुई रात में<br> | ||
थके सहमे सियार की हकलाती हुआँ-हुआँ-सी<br> | थके सहमे सियार की हकलाती हुआँ-हुआँ-सी<br> | ||
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तब वह अकेले के साथ<br> | तब वह अकेले के साथ<br> | ||
मामूली भी हो जाता है।<br><br> | मामूली भी हो जाता है।<br><br> | ||
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घुप रात के<br> | घुप रात के<br> | ||
चुप सन्नाटे में<br> | चुप सन्नाटे में<br> | ||
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हर आदमी<br> | हर आदमी<br> | ||
अपनी नियति पहचानता है।<br><br> | अपनी नियति पहचानता है।<br><br> | ||
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वही हम हैं:<br> | वही हम हैं:<br> | ||
घुप अन्धेरे में<br> | घुप अन्धेरे में<br> | ||
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अकेले<br> | अकेले<br> | ||
और मामूली।<br><br> | और मामूली।<br><br> | ||
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न होते अकेले<br> | न होते अकेले<br> | ||
तो डरते।<br> | तो डरते।<br> | ||
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अकेलेपन और मामूलियत की सैकड़ों सदियों से जानता है:<br> | अकेलेपन और मामूलियत की सैकड़ों सदियों से जानता है:<br> | ||
कि वह एक<br> | कि वह एक<br> | ||
− | बच जाता है<br> | + | बच जाता है;<br> |
वही<br> | वही<br> | ||
अनश्वर है।<br><br> | अनश्वर है।<br><br> | ||
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मामूली और अकेला:<br> | मामूली और अकेला:<br> | ||
उस घुप अंधेरे में<br> | उस घुप अंधेरे में<br> | ||
मेर भीतर से सैकड़ों घुसपैठिए<br> | मेर भीतर से सैकड़ों घुसपैठिए<br> | ||
− | आग लगाते हुए गुज़र जाते | + | आग लगाते हुए गुज़र जाते हैं—<br> |
पर उसी में<br> | पर उसी में<br> | ||
मैं उन सब की ज़िन्दगी जीता हूँ<br> | मैं उन सब की ज़िन्दगी जीता हूँ<br> | ||
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पथरा गए,<br> | पथरा गए,<br> | ||
जो खेत रहे,<br> | जो खेत रहे,<br> | ||
− | जिन्होंने वीर कर्मों के लिए सम्मान | + | जिन्होंने वीर कर्मों के लिए सम्मान पाया—<br> |
और मैं उन सब की भी ज़िन्दगी जीता हूँ<br> | और मैं उन सब की भी ज़िन्दगी जीता हूँ<br> | ||
जिन के नामहीन, स्वरहीन, अप्रत्याशित, अतर्कित भी<br> | जिन के नामहीन, स्वरहीन, अप्रत्याशित, अतर्कित भी<br> | ||
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अपने जाज्वल्यमान कर्मों का<br> | अपने जाज्वल्यमान कर्मों का<br> | ||
अवसर दिया।<br><br> | अवसर दिया।<br><br> | ||
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और यों<br> | और यों<br> | ||
इन नामहीनों की ज़िन्दगी जीता हुआ मैं<br> | इन नामहीनों की ज़िन्दगी जीता हुआ मैं<br> | ||
− | वहीं लौट आता हूँ जहाँ मैं होता हूँ जब मैं जागता | + | वहीं लौट आता हूँ जहाँ मैं होता हूँ जब मैं जागता हूँ—<br> |
मामूली और अकेला<br> | मामूली और अकेला<br> | ||
− | मैं अंधेरे के घुप में एक प्रकाश से घिर जाता | + | मैं अंधेरे के घुप में एक प्रकाश से घिर जाता हूँ—<br> |
मैं, जो नींव की ईंट हूँ:<br> | मैं, जो नींव की ईंट हूँ:<br> | ||
सुरसुराते चुप में एक अलौकिक संगीत से गूंज<br> | सुरसुराते चुप में एक अलौकिक संगीत से गूंज<br> | ||
:::उठता हूँ<br> | :::उठता हूँ<br> | ||
मैं जो सधा हुआ तार हूँ:<br> | मैं जो सधा हुआ तार हूँ:<br> | ||
− | मैं, मामूली, अकेला, दुर्दम, | + | मैं, मामूली, अकेला, दुर्दम, अनश्वर—<br> |
मैं, जो हम सब हूँ।<br><br> | मैं, जो हम सब हूँ।<br><br> | ||
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तब वह ठिठुरे सियार की रिरियाती पुकार<br> | तब वह ठिठुरे सियार की रिरियाती पुकार<br> | ||
एक स्पष्ट, तेज़, आश्वस्त गूंजती और गुंजाती हुई<br> | एक स्पष्ट, तेज़, आश्वस्त गूंजती और गुंजाती हुई<br> | ||
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जिन से हम जीते हैं<br> | जिन से हम जीते हैं<br> | ||
जिन से हमारा देश पलता है<br> | जिन से हमारा देश पलता है<br> | ||
− | जिन से हमारा राष्ट्र रूप लेता | + | जिन से हमारा राष्ट्र रूप लेता है—<br> |
− | वयस्क, स्वाधीन, सबल, प्रतिभा-मण्डित, | + | वयस्क, स्वाधीन, सबल, प्रतिभा-मण्डित, अमर—<br> |
− | और हमारी तरह | + | और हमारी तरह अकेला—क्योंकि अद्वितीय...<br><br> |
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इस से क्या <br> | इस से क्या <br> | ||
कि सवेरे हम में से एक<br> | कि सवेरे हम में से एक<br> | ||
साइकल ले कर दिन-भर के लिए क़लम घिसने जाएगा<br> | साइकल ले कर दिन-भर के लिए क़लम घिसने जाएगा<br> | ||
और एक दूसरा झाबा ले कर तरकारी बेचने<br> | और एक दूसरा झाबा ले कर तरकारी बेचने<br> | ||
− | और एक तीसरा झल्ली लेकर ढुलाई | + | और एक तीसरा झल्ली लेकर ढुलाई करने—<br> |
− | मिट्टी की, या दूसरों के ख़रीदे फल-मेवे और कपड़ों | + | मिट्टी की, या दूसरों के ख़रीदे फल-मेवे और कपड़ों की—<br> |
और एक चौथा मोटर में बैठता हुआ चपरासी से फाइलें<br> | और एक चौथा मोटर में बैठता हुआ चपरासी से फाइलें<br> | ||
− | ::: | + | :::उठवाएगा—<br> |
एक कोई बीमार बच्चे को सहलाता हुआ आश्वासन<br> | एक कोई बीमार बच्चे को सहलाता हुआ आश्वासन<br> | ||
− | ::: | + | :::देगा—'देखो,<br> |
− | सका तो ज़रूर ले आऊँगा' | + | सका तो ज़रूर ले आऊँगा'—<br> |
और एक कोई आश्वासन की असारता जानता हुआ भी<br> | और एक कोई आश्वासन की असारता जानता हुआ भी<br> | ||
− | :::मुसकरा कर | + | :::मुसकरा कर कहेगा—<br> |
'हाँ, ज़रूर, भूलना मत!'<br> | 'हाँ, ज़रूर, भूलना मत!'<br> | ||
इस से क्या कि एक की कमर झुकी होगी<br> | इस से क्या कि एक की कमर झुकी होगी<br> | ||
− | और एक उमंग से गा रहा | + | और एक उमंग से गा रहा होगा—'मोसे गंगा के पार...'<br> |
− | और एक के चश्मे का काँच टूटा | + | और एक के चश्मे का काँच टूटा होगा—<br> |
और एक के बस्ते में स्कूल की किताबें आधी से<br> | और एक के बस्ते में स्कूल की किताबें आधी से<br> | ||
:::अधिक फटी हुई होंगी?<br> | :::अधिक फटी हुई होंगी?<br> | ||
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एक के हाथ की जेब में सिगरेट की महकती डिबिया<br> | एक के हाथ की जेब में सिगरेट की महकती डिबिया<br> | ||
:::और लासे की मीठी टिकियाँ<br> | :::और लासे की मीठी टिकियाँ<br> | ||
− | + | जिस से वह दिन-भर मुँह से लचकीले बुलबुले निकाला करेगा<br> | |
::और फिर वापस खींच लिया करेगा,<br> | ::और फिर वापस खींच लिया करेगा,<br> | ||
एक ने गालों से गए दिन की नक़ली रंगत नए दिन की <br> | एक ने गालों से गए दिन की नक़ली रंगत नए दिन की <br> | ||
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जिस में हम सब<br> | जिस में हम सब<br> | ||
हर अकेली रात के अंधेरे में<br> | हर अकेली रात के अंधेरे में<br> | ||
− | एक सम्बन्ध और सामर्थ्य और गौरव की लड़ी में बंधते | + | एक सम्बन्ध और सामर्थ्य और गौरव की लड़ी में बंधते हैं—<br> |
− | हम, हम, हम, हम भारतवासी? | + | हम, हम, हम, हम भारतवासी? |
+ | |||
+ | |||
− | सितम्बर १९६५ | + | <span style="font-size:14px">सितम्बर १९६५</span> |
10:02, 31 मार्च 2008 का अवतरण
रात के घुप अन्धेरे में जो एकाएक जागता है
और दूर सागर की घुरघुराहट-जैसी चुप
सुनता है
वह निपट अकेला होता है।
अन्धकार में जागनेवाले सभी अकेले होते हैं।
पर जो यों ही सहमी हुई रात में
थके सहमे सियार की हकलाती हुआँ-हुआँ-सी
हवाई हमले के भोंपू की आवाज़ से
एकाएक जगा दिया जाता है
वह और भी अकेला होता है:
और जब वह घर से बाहर निकल कर
सागर की घुरघुराहट-जैसे चुप
घनी रात के घुप अन्धेरे में
घिर जाता है
तब वह अकेले के साथ
मामूली भी हो जाता है।
घुप रात के
चुप सन्नाटे में
अकेलापन
और मामूलियत:
इसे अचानक जगाया गया
हर आदमी
अपनी नियति पहचानता है।
वही हम हैं:
घुप अन्धेरे में
सरसराहटें सुनते हुए
अकेले
और मामूली।
न होते अकेले
तो डरते।
न होते मामूली
तो घबराते।
पर अकेले होने और साथ ही मामूली होने में
एकाएक
अन्धेरा हमारी मुट्ठी में आ जाता है
और वह अनपहचानी सुरसुराहट
एक सन्देश बन जाती है
जिसे हर मामूली अकेला
अकेलेपन और मामूलियत की सैकड़ों सदियों से जानता है:
कि वह एक
बच जाता है;
वही
अनश्वर है।
मामूली और अकेला:
उस घुप अंधेरे में
मेर भीतर से सैकड़ों घुसपैठिए
आग लगाते हुए गुज़र जाते हैं—
पर उसी में
मैं उन सब की ज़िन्दगी जीता हूँ
जिन्होंने दुश्मन के टैंक तोड़े
जिन्होंने बममार विमान गिराए
जिन्होंने राहों में बिछाई गईं विस्फोटक
- सुरंगे समेटीं,
- सुरंगे समेटीं,
जो गिरे और प्रतीक्षा में रह कर भी उठाए नहीं गए,
पथरा गए,
जो खेत रहे,
जिन्होंने वीर कर्मों के लिए सम्मान पाया—
और मैं उन सब की भी ज़िन्दगी जीता हूँ
जिन के नामहीन, स्वरहीन, अप्रत्याशित, अतर्कित भी
- आत्म-त्याग ने
- आत्म-त्याग ने
इन वीरों को
अपने जाज्वल्यमान कर्मों का
अवसर दिया।
और यों
इन नामहीनों की ज़िन्दगी जीता हुआ मैं
वहीं लौट आता हूँ जहाँ मैं होता हूँ जब मैं जागता हूँ—
मामूली और अकेला
मैं अंधेरे के घुप में एक प्रकाश से घिर जाता हूँ—
मैं, जो नींव की ईंट हूँ:
सुरसुराते चुप में एक अलौकिक संगीत से गूंज
- उठता हूँ
- उठता हूँ
मैं जो सधा हुआ तार हूँ:
मैं, मामूली, अकेला, दुर्दम, अनश्वर—
मैं, जो हम सब हूँ।
तब वह ठिठुरे सियार की रिरियाती पुकार
एक स्पष्ट, तेज़, आश्वस्त गूंजती और गुंजाती हुई
- एकसार आवाज़ बन जाती है
- एकसार आवाज़ बन जाती है
मेरा अकेलापन एक समूह में विलय हो जाता है
जिस के हर सदस्य का एक बंधा हुआ कर्त्तव्य है
जिसे वह दृढ़ता से कर रहा क्योंकि वह उसके
- जीवन की बुनियाद है,
- जीवन की बुनियाद है,
और मेरी मामूलियत एक सामर्थ्य, एक गौरव,
- एक संकल्प में बदल जाती है
- एक संकल्प में बदल जाती है
जिस में मैं करोड़ों का साथी हूँ:
रात फिर भी होगी या हो सकती है
पर मैं जानता हूँ कि भोर होगा
और उस में हम सब
संकल्प से बंधे, सामर्थ्य से भरे और गौरव से
- घिरे हुए हम सब
- घिरे हुए हम सब
अपने उन कामों में जमें होंगे
जिन से हम जीते हैं
जिन से हमारा देश पलता है
जिन से हमारा राष्ट्र रूप लेता है—
वयस्क, स्वाधीन, सबल, प्रतिभा-मण्डित, अमर—
और हमारी तरह अकेला—क्योंकि अद्वितीय...
इस से क्या
कि सवेरे हम में से एक
साइकल ले कर दिन-भर के लिए क़लम घिसने जाएगा
और एक दूसरा झाबा ले कर तरकारी बेचने
और एक तीसरा झल्ली लेकर ढुलाई करने—
मिट्टी की, या दूसरों के ख़रीदे फल-मेवे और कपड़ों की—
और एक चौथा मोटर में बैठता हुआ चपरासी से फाइलें
- उठवाएगा—
- उठवाएगा—
एक कोई बीमार बच्चे को सहलाता हुआ आश्वासन
- देगा—'देखो,
- देगा—'देखो,
सका तो ज़रूर ले आऊँगा'—
और एक कोई आश्वासन की असारता जानता हुआ भी
- मुसकरा कर कहेगा—
- मुसकरा कर कहेगा—
'हाँ, ज़रूर, भूलना मत!'
इस से क्या कि एक की कमर झुकी होगी
और एक उमंग से गा रहा होगा—'मोसे गंगा के पार...'
और एक के चश्मे का काँच टूटा होगा—
और एक के बस्ते में स्कूल की किताबें आधी से
- अधिक फटी हुई होंगी?
- अधिक फटी हुई होंगी?
एक के कुरते की कुहनियाँ छिदी होंगी,
एक के निकर में बटनों का स्थान एक आलपिन
- ने लिया होगा,
- ने लिया होगा,
एक के हाथ की पोटली में गए दिन के सवेरे के
- रोट का टुकड़ा होगा,
- रोट का टुकड़ा होगा,
एक के हाथ की जेब में सिगरेट की महकती डिबिया
- और लासे की मीठी टिकियाँ
- और लासे की मीठी टिकियाँ
जिस से वह दिन-भर मुँह से लचकीले बुलबुले निकाला करेगा
- और फिर वापस खींच लिया करेगा,
- और फिर वापस खींच लिया करेगा,
एक ने गालों से गए दिन की नक़ली रंगत नए दिन की
- नक़ली बालाई से उतारी होगी,
- नक़ली बालाई से उतारी होगी,
और एक ने चेहरे पर उबटन की जगह पसीने-धूल की
लीकों को हथेली की पुश्त से और लम्बा कर लिया होगा,
और एक के हाथों पर बूट-पॉलिश की महक और
- रंगत की लिखत
- रंगत की लिखत
दिन-भर के लिए आशा का पट्टा होगी?
इस सब से क्या
उस सब से क्या
किसी सबसे क्या
जब कि अकेलेपन में
एक व्याप्त मामूलीपन का स्पन्दन है
और वह व्याप्त मामूलीपन एक डोर है
जिस में हम सब
हर अकेली रात के अंधेरे में
एक सम्बन्ध और सामर्थ्य और गौरव की लड़ी में बंधते हैं—
हम, हम, हम, हम भारतवासी?
सितम्बर १९६५