"दुःख / नीलाभ" के अवतरणों में अंतर
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काले-काले बाग़ों में कोयल है बोलती | काले-काले बाग़ों में कोयल है बोलती | ||
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आज ही तो चिट्ठी आई बाँके ढोल की | आज ही तो चिट्ठी आई बाँके ढोल की | ||
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खोलती है चिट्ठी गोरी छज्जे पे डोलती | खोलती है चिट्ठी गोरी छज्जे पे डोलती | ||
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हाय घना दुःख है चिट्ठी मुँह से क्यों नहीं बोलती | हाय घना दुःख है चिट्ठी मुँह से क्यों नहीं बोलती | ||
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पहला बिछोड़ा है यह गौने के बाद का | पहला बिछोड़ा है यह गौने के बाद का | ||
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रातें है उनींदी और मौसम अवसाद का | रातें है उनींदी और मौसम अवसाद का | ||
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अक्षरों के जंगल में खोया है संदेसड़ा | अक्षरों के जंगल में खोया है संदेसड़ा | ||
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ऐसे में कौन बूझे गोरी का दुखड़ा | ऐसे में कौन बूझे गोरी का दुखड़ा | ||
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फ़ौज में गया है माही लिखता है अपना हाल | फ़ौज में गया है माही लिखता है अपना हाल | ||
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काग़ज में फैला कैसा काला-काला मकड़ी जाल | काग़ज में फैला कैसा काला-काला मकड़ी जाल | ||
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माहिए का डेरा ठहरा बीच कश्मीर में | माहिए का डेरा ठहरा बीच कश्मीर में | ||
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सोहने का डेरा लगा बीच कश्मीर में | सोहने का डेरा लगा बीच कश्मीर में | ||
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माहिए का डेरा लगा बीच फिल्लौर के | माहिए का डेरा लगा बीच फिल्लौर के | ||
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प्यारे का डेरा ठहरा बीच फिल्लौर के | प्यारे का डेरा ठहरा बीच फिल्लौर के | ||
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गीटे ले आना चन्ना असली बिल्लौर के | गीटे ले आना चन्ना असली बिल्लौर के | ||
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माहिए का डेरा पहुँचा बीच कसुर के | माहिए का डेरा पहुँचा बीच कसुर के | ||
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माहिए का डेरा पहुँचा बीच कसुर के | माहिए का डेरा पहुँचा बीच कसुर के | ||
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धूप वहाँ सख़्त होती, गाँव होते दूर के | धूप वहाँ सख़्त होती, गाँव होते दूर के | ||
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02:37, 29 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण
काले-काले बाग़ों में कोयल है बोलती
आज ही तो चिट्ठी आई बाँके ढोल की
खोलती है चिट्ठी गोरी छज्जे पे डोलती
हाय घना दुःख है चिट्ठी मुँह से क्यों नहीं बोलती
पहला बिछोड़ा है यह गौने के बाद का
रातें है उनींदी और मौसम अवसाद का
अक्षरों के जंगल में खोया है संदेसड़ा
ऐसे में कौन बूझे गोरी का दुखड़ा
फ़ौज में गया है माही लिखता है अपना हाल
काग़ज में फैला कैसा काला-काला मकड़ी जाल
माहिए का डेरा ठहरा बीच कश्मीर में
सोहने का डेरा लगा बीच कश्मीर में
कुण्डल ले आना बाँके, बर्फ़ों को चीर के
माहिए का डेरा लगा बीच फिल्लौर के
प्यारे का डेरा ठहरा बीच फिल्लौर के
गीटे ले आना चन्ना असली बिल्लौर के
माहिए का डेरा पहुँचा बीच कसुर के
माहिए का डेरा पहुँचा बीच कसुर के
धूप वहाँ सख़्त होती, गाँव होते दूर के