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"फायदा / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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उसको जुकाम न हो पाता!
 
उसको जुकाम न हो पाता!
  
-साभार: रघुवीर सहायक रचनावली-2, बाल साहित्य, 405
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-साभार: रघुवीर सहाय रचनावली-2, बाल साहित्य, 405
 
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03:09, 6 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

जो जेब नहोती कुरते में
तो पैसे भला कहाँ धरते?
जो घास न होती धरती पर
तो गदहे घोड़े क्या चरते?
जो हवा न होती यहीं कहीं
तो गुब्बारों में क्या भरते?
जो सूँड न होती हाथी के
तो हाथी का हम क्या करते?

बेसूँड न हाथी खा पाता
बेसूँड न हाथी पी पाता,
कहने को हाथी कहलाता
पर बिना हाथ का हो जाता।
वह मुँह ललचाता रह जाता
दो दाँत दिखाता रह जाता
फायदा फकत इतना होता
उसको जुकाम न हो पाता!

-साभार: रघुवीर सहाय रचनावली-2, बाल साहित्य, 405