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"औरतें / स्नेहमयी चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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<poem>सारी औरतों ने
 
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अपने-अपने घरों के दरवाजे़
 
अपने-अपने घरों के दरवाजे़

23:25, 13 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

सारी औरतों ने
अपने-अपने घरों के दरवाजे़
तोड़ दिए हैं
पता नहीं
वे सबकी सब गलियों में भटक रही हैं
या
पक्की-चौड़ी सड़कों पर दौड़ रही हैं
या
चौराहों के चक्कर काट-काट कर
जहां से चली थीं
वहीं पहुंच रही हैं तितलियां।