भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"औरतें / स्नेहमयी चौधरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्नेहमयी चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKCatStreeVimarsh}} | ||
<poem>सारी औरतों ने | <poem>सारी औरतों ने | ||
अपने-अपने घरों के दरवाजे़ | अपने-अपने घरों के दरवाजे़ |
23:25, 13 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
सारी औरतों ने
अपने-अपने घरों के दरवाजे़
तोड़ दिए हैं
पता नहीं
वे सबकी सब गलियों में भटक रही हैं
या
पक्की-चौड़ी सड़कों पर दौड़ रही हैं
या
चौराहों के चक्कर काट-काट कर
जहां से चली थीं
वहीं पहुंच रही हैं तितलियां।