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"थे कल जो अपने घर में वो महमाँ कहाँ हैं / ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर

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21:44, 6 फ़रवरी 2008 का अवतरण

थे कल जो अपने घर में वो महमाँ कहाँ हैं
जो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैं

आँखों में रोते रोते नम भी नहीं अब तो
थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं

कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं
पहले जो ऐ "ज़फ़र" थे वो इन्साँ कहाँ हैं