"एक हमउम्र दोस्त के प्रति / अनिल कुमार सिंह" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल कुमार सिंह |संग्रह=पहला उपदेश / अनिल कुमार सिंह }} ...) |
छो (हिज्जे) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
पतझर में नंगे हो गए पेड़ हो सकते हो<br> | पतझर में नंगे हो गए पेड़ हो सकते हो<br> | ||
− | ठूँठ तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त !<br><br> | + | ठूँठ तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!<br><br> |
तुम्हें याद है न<br> | तुम्हें याद है न<br> | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
किन्हीं फाड़ दिए गए पत्रों की स्मृतियों का<br> | किन्हीं फाड़ दिए गए पत्रों की स्मृतियों का<br> | ||
− | कौन सा | + | कौन सा दस्तावेज़ है तुम्हारे पास?<br><br> |
‘इस शून्य तापमान में<br> | ‘इस शून्य तापमान में<br> | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
जो मुझे आश्चर्यचकित करती हैं<br><br> | जो मुझे आश्चर्यचकित करती हैं<br><br> | ||
− | गर्म हवाओं से | + | गर्म हवाओं से स्वच्छंद हो सकते हो<br> |
− | + | अंधड़ तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!<br><br> | |
हम एक बर्फीली नदी में यात्रा कर रहे हैं<br> | हम एक बर्फीली नदी में यात्रा कर रहे हैं<br> | ||
पंक्ति 37: | पंक्ति 37: | ||
एक मुँहफट किसान हो सकते हो<br> | एक मुँहफट किसान हो सकते हो<br> | ||
− | गँवार तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त ! | + | गँवार तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त! |
09:53, 29 जून 2008 का अवतरण
पतझर में नंगे हो गए पेड़ हो सकते हो
ठूँठ तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!
तुम्हें याद है न
गए शिशिर में मिले थे हम-तुम
और कितनी देर तक सोचते रहे थे
एक-दूसरे के बारे में
आज भी जब सर्द हवाएँ चलती हैं
तो उड़ती हुई धूल और पत्तों में
सबसे साफ़ और स्पष्ट
दिखाई देता है तुम्हारा ही चेहरा
किन्हीं फाड़ दिए गए पत्रों की स्मृतियों का
कौन सा दस्तावेज़ है तुम्हारे पास?
‘इस शून्य तापमान में
कितनी गर्म और मुलायम हैं
तुम्हारी हथेलियाँ’-
ये कुछ ऐसी बातें हैं
जो मुझे आश्चर्यचकित करती हैं
गर्म हवाओं से स्वच्छंद हो सकते हो
अंधड़ तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!
हम एक बर्फीली नदी में यात्रा कर रहे हैं
अक्सर अपनी घुटती साँसों से
मैं तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
कहाँ से लाते हो ऑक्सीजन
कहाँ से पाते हो इतनी ऊर्जा
एक मुँहफट किसान हो सकते हो
गँवार तो तुम नहीं ही हो मेरे दोस्त!