"कमाल की औरतें १९ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर
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14:58, 21 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
चाची के समृद्ध नैहर
जमींदारी ठाठ के सब कायल
एक जोड़ी बैल
एक गाय
एक बीघा जमीन पर
लिखा आई थी चाची अपना नाम
बड़कवा घर की लड़की
वेद जी के बेटे से ब्याही गई
सारी रात बजती रही शहनाई
कलाकारों को खुश करके भेजा बापू ने
असली जरी बनारसी की साड़ी में विदा की गई चाची
ससुराल में अपने नन्हें पैर का लाल छापा
कोहबर की गुदगुदी वाले खेल
औरतों का बार-बार उनके कमर में पड़ी
एक किलो चांदी की करधनी को हसरत से देखा जाना
हुलसती रहीं मन ही मन
गाना बजाना नाचना मजाक का अंत देर रात हुआ
तभी एक ओर अंत की शुरुआत हुई
जब फुसफुसाती आवाज़ में चाचा ने
अपना निर्णय घर के आंगन में सुनाया
आपके कहने से ब्याह कर लिए अब आप रखो दुलहिन
शहर की पढ़ाई करनी है हमें अभी जाना होगा
अब ई सब मोह माया में हम नहीं फंसने वाले
जाते कदमों की आहट से सब ओर सन्नाटा पसरा था
साखू सागौन की लकड़ी का पलंग बबूल के कांटे सा चुभा
अगली सुबह लाल आंख भरी मांग
लाल जोड़े की चाची ने घर का आंगन लीपा
नैहर के बैलों को चारा डाली गाय के गले लग बिसूरती रही
फिर गोइठा वाले घर से लकड़ी लवना बटोरती चाची
चूल्हे चकी डेहरी धान से नाता जोड़ती रही
उनके हाथों की चूडिय़ां आते-जाते
कितने बसंत तक कभी नहीं बजी
सावन सखियां झूला के दस्तक पर
चाची चिहुंक चिहुंक जाती
ई कौने गलती का सजा है...सब निरुत्तर।