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"हमारे समय का फ़लसफ़ा / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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रेत में अलसाया मगरमच्छ
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हरी कालीन जैसी बिछी घास
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और टीले पर बैठा मनुष्य
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प्रकृति के सारे जाने-अनजाने जीव
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इकट्ठे हुए थे एक जगह
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सबकी समस्या थी जीवन की 
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जीवित बचे रहने की
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इस विकट समस्या की बहस में
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उपस्थित हर जीव
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दूसरे के लिए भोजन की थाली था
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कोई भी एक नष्ट होता तो
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दूसरा स्वंय ही नष्ट हो जाता
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फिर कैसे कोई किसी को खाता
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और अगर खाता नहीं तो जीवित कैसे रहता
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मनुष्य ही ऐसा था
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जो किसी का भोज्य नहीं था
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जानता था जीवन जीने की कला
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बुरे दिनों में घास की रोटियाँ खाकर भी
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बचा सकता था अपने आपको
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अच्छे दिनों में शेर का शिकार करता था
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इसलिए टीले पर बैठा
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मुस्करा रहा था
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नहीं सूझा किसी को भी
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इस विकट समस्या का हल
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तब मनुष्य ने ही सुझाया
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प्रेम में सबकुछ ज़ायज़ होता है
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प्रेम में कोई नष्ट नहीं होता
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जितना व्यापक प्रेम उतना ही ज्यादा जीवन
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सबको सूझ गया विकट समस्या का हल
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बकरी को घास से प्रेम हो गया
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और वह प्रेम से चरने लगी घास
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शेर को बकरी से हो गया प्रेम
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और वह प्रेम से बकरी को खा गया
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तबसे प्रेम का सिलसिला खूब फलाफूला
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अब कभी भी / कहीं भी
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किसी को / किसी से
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प्रेम हो जाता है।
  
  
 
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16:36, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण


हमारे समय का फ़लसफ़ा


इकट्ठे हुए थे सारे जीव एक ज़गह
फुनगी पर बैठी चिडिय़ा
गर्वोन्नत शेर
रेत में अलसाया मगरमच्छ
इधर-उधर रेंगते कीड़े-मकोड़े
हरी कालीन जैसी बिछी घास
और टीले पर बैठा मनुष्य

प्रकृति के सारे जाने-अनजाने जीव
इकट्ठे हुए थे एक जगह
सबकी समस्या थी जीवन की
जीवित बचे रहने की

इस विकट समस्या की बहस में
उपस्थित हर जीव
दूसरे के लिए भोजन की थाली था
कोई भी एक नष्ट होता तो
दूसरा स्वंय ही नष्ट हो जाता
फिर कैसे कोई किसी को खाता
और अगर खाता नहीं तो जीवित कैसे रहता

मनुष्य ही ऐसा था
जो किसी का भोज्य नहीं था
जानता था जीवन जीने की कला
बुरे दिनों में घास की रोटियाँ खाकर भी
बचा सकता था अपने आपको
अच्छे दिनों में शेर का शिकार करता था
इसलिए टीले पर बैठा
मुस्करा रहा था

नहीं सूझा किसी को भी
इस विकट समस्या का हल
तब मनुष्य ने ही सुझाया
प्रेम में सबकुछ ज़ायज़ होता है
प्रेम में कोई नष्ट नहीं होता
जितना व्यापक प्रेम उतना ही ज्यादा जीवन

सबको सूझ गया विकट समस्या का हल
बकरी को घास से प्रेम हो गया
और वह प्रेम से चरने लगी घास
शेर को बकरी से हो गया प्रेम
और वह प्रेम से बकरी को खा गया

तबसे प्रेम का सिलसिला खूब फलाफूला
अब कभी भी / कहीं भी
किसी को / किसी से
प्रेम हो जाता है।