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+ | चारो तरफ़ काला घुप्प | ||
+ | ऐसे में मेरे पंख हवाओं में | ||
+ | गुलाबी ठण्ड भर रहे थे | ||
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+ | मेरा आजाद तन | ||
+ | पूर्णीमा के चाँद से भी ज़्यादा | ||
+ | दमक रहा था | ||
+ | एक कबूतर | ||
+ | अंधेरे के खिलाफ़ | ||
+ | पहली बार उड़ान भर रहा था | ||
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+ | खुश थे सभी देवी-देवता | ||
+ | कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र | ||
+ | दे दिया खुशी से | ||
+ | इन्द्रधनुष ने दिए दो रंग उपहार में | ||
+ | हरे रंग को एक पंख पर | ||
+ | दूसरे पर केशरिया | ||
+ | पीठ के बीचो-बीच | ||
+ | घूमते हुए सुदर्शन चक्र को लिए | ||
+ | मैं उड़ रहा हूँ वर्षों से | ||
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+ | इन्तज़ार कर रहा हूँ | ||
+ | कब सुबह हो और उतरूँ | ||
+ | अपने देश की आज़ाद धरती पर। | ||
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16:48, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
सफ़ेद कबूतर
सन् उन्नीस सौ सैंतालिस
महीना अगस्त का
जब मैं छूटा था रक्तिम पंजों से
और आज़ादी की हुलास में उड़ता ही चला गया
उड़ान देखकर दंग था आसमान
गरूण ने दबा ली थी दांतों तले अंगुली
मेरा रंग सफ़ेद झक
और आधी रात का वक्त
चारो तरफ़ काला घुप्प
ऐसे में मेरे पंख हवाओं में
गुलाबी ठण्ड भर रहे थे
मेरा आजाद तन
पूर्णीमा के चाँद से भी ज़्यादा
दमक रहा था
एक कबूतर
अंधेरे के खिलाफ़
पहली बार उड़ान भर रहा था
खुश थे सभी देवी-देवता
कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र
दे दिया खुशी से
इन्द्रधनुष ने दिए दो रंग उपहार में
हरे रंग को एक पंख पर
दूसरे पर केशरिया
पीठ के बीचो-बीच
घूमते हुए सुदर्शन चक्र को लिए
मैं उड़ रहा हूँ वर्षों से
इन्तज़ार कर रहा हूँ
कब सुबह हो और उतरूँ
अपने देश की आज़ाद धरती पर।