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"अपने तड़पने की / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर
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सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का | सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का |
20:27, 6 अगस्त 2008 का अवतरण
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का
यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ है
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का
बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत कर
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का