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"उठ जाग मुसाफिर भोर भई / भजन" के अवतरणों में अंतर

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18:44, 20 फ़रवरी 2008 का अवतरण

उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है

जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है


खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा

यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है.... उठ ...


जो कल करना है आज करले जो आज करना है अब करले

जब चिडियों ने खेत चुग लिया फिर पछताये क्या होवत है... उठ ...


नादान भुगत करनी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहाँ

जब पाप की गठरी शीश धरी फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है... उठ ....