भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरा हाथ मेरे काँधे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र }} तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है<br...)
 
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है<br>
 
पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है<br>
 
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है।
 
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है।
 +
 +
कुछ मिला कुछ गया तेरी यादों में <br>
 +
क्या दें तुमको पास कुछ भी नहीं
 +
सांस आती है और सांस जाती सनम<br>
 +
एक तेरे सिवा दिल में कुछ नहीं

15:24, 14 मई 2008 का अवतरण

तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है।

नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं,
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है।

पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है।

कुछ मिला कुछ गया तेरी यादों में
क्या दें तुमको पास कुछ भी नहीं सांस आती है और सांस जाती सनम
एक तेरे सिवा दिल में कुछ नहीं