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"स्वालम्बन के संत / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'" के अवतरणों में अंतर

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हिंसा केरोॅ  अन्धकार   मेॅ बापू  रहै   प्रकाश  सूर्य के,
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पराधीन  भारत   मेॅ   बापू दिव्य   एक   संदेश    महान,
अन्यायी के विकट व्यूह मेॅ नाद  वहा  रं तेज तूर्य के ।
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जन-जन केॅ  जोड़ै के खातिर, दै देलकै प्राणोॅ के दान
  
सत्य-अहिंसा  के उजास लै बापू   यहाँ    उतरलोॅ   छेलै,
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अंग्रेजोॅ  के  राजोॅ   मेॅ  हौ भारत  कत्तेॅ  बेवश  दीन,
रेगिस्तानोॅ में  जैसेॅ    कि सागर नया संघरलोॅ छेलै
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शिक्षा दीक्षाओं सेॅ ही  नै, निर्धनतौ  सेॅ  बड़ा  मलीन
  
हुनकोॅ तेॅ विश्वास यहा बस अगर धरा पर कुछुवो टिकतै,
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ई  निर्धनता  केॅ  तोड़ै  लेॅ बापू  के  हौ  अद्भुत  खोज,
तेॅ हिंसा नैएक अहिंसा कहिया लोगें सीख ई सिखतै
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जे गौरव सेॅ भरलोॅ छेलै, देशप्रेम सेॅ  लब लब ओज
  
आजादी के  बात रहौ   कि अपने हित  के बात रहौ,
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हर घर  में  खादी के  चर्चा, हर घर में चरखा   के   राज,
ई  अच्छा नीति नै   केकरोॅ हिंसा   केरोॅ साथ बहौ
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निर्धन   के   माथा पर जेना सोना-मोती केरोॅ ताज
  
बापू के  संदेश यहा तेॅ जे हिंसा सेॅ पैलोॅ  जाय छै,
+
अपनोॅ रोजी, अपनोॅ रोटी, हर हाथोॅ केॅ जी भर काम,
ऊ कभियो थिर रहे नै पारेॅ, बोहोॅ नाँखी बहलोॅ जाय छै
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खादी होतै सबके देह पर, सुन्दर कपड़ा  सस्ता दाम
  
जे कुछुवोॅ भी नर पावै छै हिंसा के  ताकत पर बल सेॅ,
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बड़ोॅ मील  केॅ रोकै लेली, एक  यही तेॅ  बचै  उपाय,
ऊ होनै केॅ साथ छुटै छै, की टिकलौ जे पैलोॅ छल सेॅ
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बड़ोॅ मील जे लघु धन्धा पर बनते  रहलै  क्रूर कसाय
  
चैराचैरी    के    हत्यो  सौ डिगले जरोॅ नै सत्य विचार,
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भारी कल पुर्जा तेॅ दुश्मन लघु  धन्धा  के  होतै  छै,
बड़ोॅ अहिंसा सेॅ की होतै पापी    केरोॅ    अत्याचार
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हेनोॅ  जहाँ  व्यवस्था होतै, लघु जन वैठां  रोतै  छै
  
जे अहिंसा छेकै, ऊ जै ऋषिये-मुनिये    केरोॅ    बल,
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जांे चरखा ठो घर-घर होतै, जांे  खादी  के  चलतै  काम,
तेॅ  अहिंसा सब लोगोॅ के युग-युग सेॅ छेकै संबल
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तेॅ  समझोॅ निर्धन के घर में एक साथ छै चारो धाम
  
यही अहिंसा-पथ पर चली केॅ मानव पावै    रूप    अनूप,
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तबेॅ कथी  लेॅ  सरकारोॅ  पर निर्भर  रहतै  निर्धन  लोग,
जेकरोॅ  सम्मुख टिकै नै पारेॅ कोय्यो  नरभक्षी नर-भूप
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ई स्वराज के ऐला  सेॅ तेॅ मिटनै छै सब घर के सोग
  
हंसा तेॅ पशु  धर्म निश्चये आरो  अहिंसा  धर्म  नरोॅ के,
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स्वाभिमान के भाव  उपजतै स्वअवलम्बन    केरोॅ    भाव,
जेकरोॅ लुग  छै धर्म  दूसरोॅ तेॅ फेनू की बात डरोॅ के ।
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स्वदेशी  भावोॅ सेॅ जुड़तै जन के जन सेॅ नया जुड़ाव
  
बापू  के  ई  सीख  कभी की धरती   पर   धूमिल    पड़तै,
+
बापू   तोरोॅ  सोच दिव्य हौ नया   रोशनी  सेॅ   भरपूर,
ई  तेॅ हेनोॅ एक रोशनी ऊपरे  ऊपर  जे   चढ़तै
+
खादी चरखा के गति देखी नीति  विदेशी   चकनाचूर
  
बापू नेॅ बतलैलकै  सबकेॅ अर्थ अहिंसा केरोॅ सच-सच,
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दान दहेजोॅ तक में  चरखा उत्सव  पर  खादी के मान,
कायरता जे एकरा समझै ओकरा सेॅ बापू तेॅ अक्कच
+
गाँधी तोरोॅ राजोॅ  मेॅ  हौ स्वदेशी  के  सुरुलय, तान
  
हुनी अहिंसा केॅ समझे बस आत्मबलोॅ सेॅ कष्ट सहन ही,
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एक    अकेले  खादी-चरखा अंग्रेजोॅ ले  काल  समान,
वही बलोॅ सेॅ हिंसा केरोॅ क्रूर आचरण भाव दलन ही
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गाँधी तोरोॅ राजोॅ मेॅ हौ, स्वदेशी  के  सुर लय,  तान
  
यही   वास्तंे    बापू    लेली एत्तेॅ   रहै  अहिंसा   प्यारोॅ,
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सबके  मन  में भाव देश के, जागै   छेलै   एक   समान,
एक्के   बात बतैतेॅ रहलै हिंसा सेॅ कभियो नै हारोॅ
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गाँधी   तोरोॅ राजोॅ में हौ स्वदेशी के सुरु लय, तान
  
यही अहिंसा मुक्ति मनुज के, यही  अहिंसा  नर  के जय,
 
यही  मार्ग  सेॅ पावेॅ पारेॅ सब हिंसा पर जय निश्चय ।
 
 
यहा  मार्ग  तेॅ  अन्यायी  के घोर    क्रूरता  रोकेॅ  पारेॅ,
 
जे  अनुगामी  ई  पथ केरोॅ, संभव नै छै  कभियो हारेॅ ।
 
 
यहा  अहिंसा    हिंसारोधी, बहिष्कार  के  ताकत  लानै
 
असहयोग  वहीं  तेॅ  करतै जे एकरोॅ ताकत केॅ जानै ।
 
 
तोरोॅ  बात  बुझी    केॅ जागी  उठलै  सौंसे    देश,
 
सम्राटे    रं  पूजित    होलै लै फकीर  के  ऐलै भेष ।
 
 
सम्राटो  के  पीछू  हौ  रं कहाँ  चलै  छै  सौंसे  देश,
 
पोछै    छेलै एक  फकीरें सब के दुख केॅ, सबके क्लेश ।
 
 
जे  फकीर केॅ  कुछुवो डर नै, नै  विरोध  के  चिन्ता  ही,
 
ऊ  तेॅ  ऐलोॅ  छेलै  जेना भारत-भाग्य  विधाता  ही ।
 
 
अंगुलीमाल पर बुद्ध बनी केॅ बापू  ऐलै  धरती    पर,
 
कलकल छलछल जल करुणा के बहले  गेलै  परती पर ।
 
 
एक  निहत्था  के हाथोॅ मेॅ अस्त्रा  अहिंसा  के  अनमोल,
 
अमृत से कटियो  टा कम नै बापू  केरोॅ  अमृत  बोल ।
 
  
 
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22:15, 10 जून 2016 के समय का अवतरण

पराधीन भारत मेॅ बापू दिव्य एक संदेश महान,
जन-जन केॅ जोड़ै के खातिर, दै देलकै प्राणोॅ के दान ।

अंग्रेजोॅ के राजोॅ मेॅ हौ भारत कत्तेॅ बेवश दीन,
शिक्षा दीक्षाओं सेॅ ही नै, निर्धनतौ सेॅ बड़ा मलीन ।

ई निर्धनता केॅ तोड़ै लेॅ बापू के हौ अद्भुत खोज,
जे गौरव सेॅ भरलोॅ छेलै, देशप्रेम सेॅ लब लब ओज ।

हर घर में खादी के चर्चा, हर घर में चरखा के राज,
निर्धन के माथा पर जेना सोना-मोती केरोॅ ताज ।

अपनोॅ रोजी, अपनोॅ रोटी, हर हाथोॅ केॅ जी भर काम,
खादी होतै सबके देह पर, सुन्दर कपड़ा सस्ता दाम ।

बड़ोॅ मील केॅ रोकै लेली, एक यही तेॅ बचै उपाय,
बड़ोॅ मील जे लघु धन्धा पर बनते रहलै क्रूर कसाय ।

भारी कल पुर्जा तेॅ दुश्मन लघु धन्धा के होतै छै,
हेनोॅ जहाँ व्यवस्था होतै, लघु जन वैठां रोतै छै ।

जांे चरखा ठो घर-घर होतै, जांे खादी के चलतै काम,
तेॅ समझोॅ निर्धन के घर में एक साथ छै चारो धाम ।

तबेॅ कथी लेॅ सरकारोॅ पर निर्भर रहतै निर्धन लोग,
ई स्वराज के ऐला सेॅ तेॅ मिटनै छै सब घर के सोग ।

स्वाभिमान के भाव उपजतै स्वअवलम्बन केरोॅ भाव,
स्वदेशी भावोॅ सेॅ जुड़तै जन के जन सेॅ नया जुड़ाव ।

बापू तोरोॅ सोच दिव्य हौ नया रोशनी सेॅ भरपूर,
खादी चरखा के गति देखी नीति विदेशी चकनाचूर ।

दान दहेजोॅ तक में चरखा उत्सव पर खादी के मान,
गाँधी तोरोॅ राजोॅ मेॅ हौ स्वदेशी के सुरुलय, तान ।

एक अकेले खादी-चरखा अंग्रेजोॅ ले काल समान,
गाँधी तोरोॅ राजोॅ मेॅ हौ, स्वदेशी के सुर लय, तान ।

सबके मन में भाव देश के, जागै छेलै एक समान,
गाँधी तोरोॅ राजोॅ में हौ स्वदेशी के सुरु लय, तान ।