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"क़ातिल जब मसीहा है / शहनाज़ इमरानी" के अवतरणों में अंतर
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तुम्हारे पास है सिर्फ़ दुआ | तुम्हारे पास है सिर्फ़ दुआ | ||
जो तुम रो कर, चीख़ कर | जो तुम रो कर, चीख़ कर | ||
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कोई भी कुछ नहीं कहेगा | कोई भी कुछ नहीं कहेगा | ||
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08:02, 10 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
सिर्फ़ लात ही तो मारी है
भूखा ही तो रखना चाहते हैं वो तुम्हें
नादान हो तुम भीख माँगते हो
तुम रोटी की बात करते हो
सरकार के रहनुमा के आगे
जो मुग्ध हैं खुद के आत्मसम्मोहन में
न्याय और अन्याय की जंग में
जहाँ सच को गवाह नहीं मिलता
ख़ुदाओं की इस दुनियां में
तुम्हारे पास है सिर्फ़ दुआ
जो तुम रो कर, चीख़ कर
या हाथ फैला कर करो
कोई भी कुछ नहीं कहेगा