"धान कूटै धनियाँ / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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आरो दू-चार के मछली लेॅ गस्त छै | आरो दू-चार के मछली लेॅ गस्त छै | ||
आपनोॅ औसारा पर आपनै में बात करै | आपनोॅ औसारा पर आपनै में बात करै | ||
− | बात करी हाँसै छै | + | बात करी हाँसै छै साहू-सहुनियाँ । |
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21:32, 19 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
धान कूटै धनियाँ, बैठोॅ बहिनियाँ
केला के चोप लै केॅ दौड़ै कुम्हैनियाँ।
एकोॅ-एकोॅ पत्ता पर सुपोॅ भर धान छै
अभी-अभी बरसा मेॅ करलेॅ असनान छै
झूमै, मतैलोॅ रं खेतोॅ के धान सब
पुरतै किसानोॅ के अबकी अरमान सब
पुरबा के झोकोॅ मेॅ उठै छै, गिरै छै
देखै मेॅ हेन्हे कि साँप जेना तैरै छै
राघो किसानोॅ के दुलहैनिया ठुनकै छै
अबकी अगहनोॅ में जैबै पुरैनियाँ ।
धानोॅ पर बूँदोॅ के मोती छै छिरयैलोॅ
हरियैलोॅ धान देखी मनो छै हरियैलोॅ
धानोॅ के जड़ी में पानी के रेत बहै
मेंढ़ी पर बगुला-बराती के पाँत रहै
उड़लै, दू-चार, शेष ध्यानोॅ में मस्त छै
आरो दू-चार के मछली लेॅ गस्त छै
आपनोॅ औसारा पर आपनै में बात करै
बात करी हाँसै छै साहू-सहुनियाँ ।