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"समय का पहिया (कविता) / गोरख पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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− | फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी | + | |रचनाकार=गोरख पाण्डेय |
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02:05, 12 अप्रैल 2008 का अवतरण
समय का पहिया चले रे साथी
समय का पहिया चले
फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी
समय का पहिया चले
रात और दिन पल पल छिन
आगे बढ़ता जाय
तोड़ पुराना नये सिरे से
सब कुछ गढ़ता जाय
पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथी
समय का पहिया चले
उठा आदमी जब जंगल से
अपना सीना ताने
रफ़्तारों को मुट्ठी में कर
पहिया लगा घुमाने
मेहनत के हाथों से
आज़ादी की सड़के ढले रे साथी
समय का पहिया चले