भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खूनी हस्‍ताक्षर / गोपालप्रसाद व्यास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(http://akhilkipasand.blogspot.com/2008/06/12.html से चेंपा)
(added line breaks)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=गोपालप्रसाद व्यास
 
|रचनाकार=गोपालप्रसाद व्यास
 
}}
 
}}
वह खून कहो किस मतलब का
+
वह खून कहो किस मतलब का<br>
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
+
जिसमें उबाल का नाम नहीं।<br>
वह खून कहो किस मतलब का
+
वह खून कहो किस मतलब का<br>
आ सके देश के काम नहीं।
+
आ सके देश के काम नहीं।<br>
 
+
<br>
वह खून कहो किस मतलब का
+
वह खून कहो किस मतलब का<br>
जिसमें जीवन, न रवानी है!
+
जिसमें जीवन, न रवानी है!<br>
जो परवश होकर बहता है,
+
जो परवश होकर बहता है,<br>
वह खून नहीं, पानी है!
+
वह खून नहीं, पानी है!<br>
 
+
<br>
उस दिन लोगों ने सही-सही
+
उस दिन लोगों ने सही-सही<br>
खून की कीमत पहचानी थी।
+
खून की कीमत पहचानी थी।<br>
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
+
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में<br>
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।
+
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।<br>
 
+
<br>
बोले,स्वतंत्रता की खातिर
+
बोले, "स्वतंत्रता की खातिर<br>
बलिदान तुम्हें करना होगा।
+
बलिदान तुम्हें करना होगा।<br>
तुम बहुत जी चुके जग में,
+
तुम बहुत जी चुके जग में,<br>
लेकिन आगे मरना होगा।
+
लेकिन आगे मरना होगा।<br>
 
+
<br>
आज़ादी के चरणें में जो,
+
आज़ादी के चरणें में जो,<br>
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
+
जयमाल चढ़ाई जाएगी।<br>
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
+
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के<br>
फूलों से गूँथी जाएगी।
+
फूलों से गूँथी जाएगी।<br>
 
+
<br>
आजादी का संग्राम कहीं
+
आजादी का संग्राम कहीं<br>
पैसे पर खेला जाता है?
+
पैसे पर खेला जाता है?<br>
यह शीश कटाने का सौदा
+
यह शीश कटाने का सौदा<br>
नंगे सर झेला जाता है”
+
नंगे सर झेला जाता है"<br>
 
+
<br>
यूँ कहते-कहते वक्ता की
+
यूँ कहते-कहते वक्ता की<br>
आंखों में खून उतर आया!
+
आंखों में खून उतर आया!<br>
मुख रक्त - वर्ण हो दमक उठा
+
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा<br>
दमकी उनकी रक्तिम काया!
+
दमकी उनकी रक्तिम काया!<br>
 
+
<br>
आजानु-बाहु ऊँची करके,
+
आजानु-बाहु ऊँची करके,<br>
वे बोले,”रक्त मुझे देना।
+
वे बोले, "रक्त मुझे देना।<br>
इसके बदले भारत की
+
इसके बदले भारत की<br>
आज़ादी तुम मुझसे लेना।”
+
आज़ादी तुम मुझसे लेना।"<br>
 
+
<br>
हो गई उथल-पुथल,
+
हो गई सभा में उथल-पुथल,<br>
सीने में दिल न समाते थे।
+
सीने में दिल न समाते थे।<br>
स्वर इनकलाब के नारों के
+
स्वर इनकलाब के नारों के<br>
कोसों तक छाए जाते थे।
+
कोसों तक छाए जाते थे।<br>
 
+
<br>
“हम देंगे-देंगे खून”
+
“हम देंगे-देंगे खून”<br>
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
+
शब्द बस यही सुनाई देते थे।<br>
रण में जाने को युवक खड़े
+
रण में जाने को युवक खड़े<br>
तैयार दिखाई देते थे।
+
तैयार दिखाई देते थे।<br>
 
+
<br>
बोले सुभाष,इस तरह नहीं,
+
बोले सुभाष, "इस तरह नहीं,<br>
बातों से मतलब सरता है।
+
बातों से मतलब सरता है।<br>
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
+
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं<br>
आकर हस्ताक्षर करता है?
+
आकर हस्ताक्षर करता है?<br>
 
+
<br>
इसको भरनेवाले जन को
+
इसको भरनेवाले जन को<br>
सर्वस्व-समर्पण काना है।
+
सर्वस्व-समर्पण काना है।<br>
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
+
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन<br>
माता को अर्पण करना है।
+
माता को अर्पण करना है।<br>
 
+
<br>
पर यह साधारण पत्र नहीं,
+
पर यह साधारण पत्र नहीं,<br>
आज़ादी का परवाना है।
+
आज़ादी का परवाना है।<br>
इस पर तुमको अपने तन का
+
इस पर तुमको अपने तन का<br>
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!
+
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!<br>
 
+
<br>
वह आगे आए जिसके तन में
+
वह आगे आए जिसके तन में<br>
भारतीय ख़ूँ बहता हो।
+
खून भारतीय बहता हो।<br>
वह आगे आए जो अपने को
+
वह आगे आए जो अपने को<br>
हिंदुस्तानी कहता हो!
+
हिंदुस्तानी कहता हो!<br>
 
+
<br>
वह आगे आए, जो इस पर
+
वह आगे आए, जो इस पर<br>
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
+
खूनी हस्ताक्षर करता हो!<br>
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
+
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए<br>
जो इसको हँसकर लेता हो!
+
जो इसको हँसकर लेता हो!"<br>
 
+
<br>
सारी जनता हुंकार उठी-
+
सारी जनता हुंकार उठी-<br>
हम आते हैं, हम आते हैं!
+
हम आते हैं, हम आते हैं!<br>
माता के चरणों में यह लो,
+
माता के चरणों में यह लो,<br>
हम अपना रक्त चढाते हैं!
+
हम अपना रक्त चढाते हैं!<br>
 
+
<br>
साहस से बढ़े युबक उस दिन,
+
साहस से बढ़े युबक उस दिन,<br>
देखा, बढ़ते ही आते थे!
+
देखा, बढ़ते ही आते थे!<br>
चाकू-छुरी कटारियों से,
+
चाकू-छुरी कटारियों से,<br>
वे अपना रक्त गिराते थे!
+
वे अपना रक्त गिराते थे!<br>
 
+
<br>
फिर उस रक्त की स्याही में,
+
फिर उस रक्त की स्याही में,<br>
वे अपनी कलम डुबाते थे!
+
वे अपनी कलम डुबाते थे!<br>
आज़ादी के परवाने पर
+
आज़ादी के परवाने पर<br>
हस्ताक्षर करते जाते थे!
+
हस्ताक्षर करते जाते थे!<br>
 
+
<br>
उस दिन तारों ने देखा था
+
उस दिन तारों ने देखा था<br>
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
+
हिंदुस्तानी विश्वास नया।<br>
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
+
जब लिक्खा महा रणवीरों ने<br>
 
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।
 
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।

19:29, 13 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!

उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, "स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है"

यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।"

हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, "इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।

पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!

वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!"

सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!

साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!

फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!

उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।