"बिन पानी / बुधराम यादव" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुधराम यादव |संग्रह=गॉंव कहॉं सोर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
पानी धलव अटाथे! | पानी धलव अटाथे! | ||
नदिया खँड गहिरा झिरिया म | नदिया खँड गहिरा झिरिया म | ||
− | रेती सिरिफ तकाथे | + | रेती सिरिफ तकाथे! |
भाजी भांटा कोंचइ कॉंदा | भाजी भांटा कोंचइ कॉंदा | ||
− | बिन पानी का जगरंय ! | + | बिन पानी का जगरंय! |
हरियर चारा दुबी झुरागंय | हरियर चारा दुबी झुरागंय | ||
गाय गरू का बगरंय! | गाय गरू का बगरंय! | ||
− | रसाताल | + | रसाताल के पानी सोत ह |
दिनो दिन गहिरावत हें! | दिनो दिन गहिरावत हें! | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 43: | ||
चिमनी दीया बुझावंय झप-झप | चिमनी दीया बुझावंय झप-झप | ||
बिना तेल का बारंय! | बिना तेल का बारंय! | ||
− | अँधियारी म टमड़त | + | अँधियारी म टमड़त परछी |
बर मनटोरा जावय! | बर मनटोरा जावय! | ||
− | सन्डमइला | + | सन्डमइला काड़ी ल बपरी |
− | लकर-धकर | + | लकर-धकर सुलगावय! |
अब एक ल बती ह घर घर | अब एक ल बती ह घर घर | ||
म अंजोर बगरावत हें! | म अंजोर बगरावत हें! | ||
पंक्ति 62: | पंक्ति 62: | ||
गाँव-गौटिया बड़े किसनहा | गाँव-गौटिया बड़े किसनहा | ||
− | गाँव-गंवतरी | + | गाँव-गंवतरी जावंय। |
− | छकड़ा-गाड़ी | + | छकड़ा-गाड़ी घोड़ा-बघ्घी |
खूब सुघर संभरावंय! | खूब सुघर संभरावंय! | ||
गर भर घुंघरू कौड़ी बांधय | गर भर घुंघरू कौड़ी बांधय | ||
माथा मलमल पट्टी! | माथा मलमल पट्टी! | ||
मूंगा माला अउ जुगजुगी | मूंगा माला अउ जुगजुगी | ||
− | नाथत जावंय सत्तीं | + | नाथत जावंय सत्तीं! |
अब दरवजा फटफटही अउ | अब दरवजा फटफटही अउ | ||
जीप कार घर्रावत हें! | जीप कार घर्रावत हें! | ||
छन छन खन खन घंरा बाजंय | छन छन खन खन घंरा बाजंय | ||
− | सरपट बैला भागंय ! | + | सरपट बैला भागंय! |
चमकंय झझकंय डहर चलइया | चमकंय झझकंय डहर चलइया | ||
− | सुतनिंदहा मन जागंय ! | + | सुतनिंदहा मन जागंय! |
ढरका फुदकी टपटप टपटप | ढरका फुदकी टपटप टपटप | ||
− | धोड़ा चाल देखावंय ! | + | धोड़ा चाल देखावंय! |
चाबुक देखे बिदकंय बैरी | चाबुक देखे बिदकंय बैरी | ||
− | जोरहा हिन हिनावय ! | + | जोरहा हिन हिनावय! |
बर बिहाव सरकस म अब तो | बर बिहाव सरकस म अब तो | ||
− | धोड़ा कभू नचावत हें ! | + | धोड़ा कभू नचावत हें! |
</poem> | </poem> |
02:57, 28 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
रतनपुर जइसन कइ गढ़ के
छै छै कोरी तरिया।
बिना मरमत खंती माटी
परे निचट हें परिया
बरहों महीना बिलमय पानी
सोच उदिम करवइया!
जोगी डबरा टारबांध
स्टापडेम बनवइया!
मिनरल वाटर अउ कोल्डड्रिंक
फेंटा पीके गोरियावत हें!
पुरखौती कुवाँ बवली के
पानी धलव अटाथे!
नदिया खँड गहिरा झिरिया म
रेती सिरिफ तकाथे!
भाजी भांटा कोंचइ कॉंदा
बिन पानी का जगरंय!
हरियर चारा दुबी झुरागंय
गाय गरू का बगरंय!
रसाताल के पानी सोत ह
दिनो दिन गहिरावत हें!
पचरी घाट नहावंय तइहा
अउ अड़बड़ सुख पावंय!
अब तरिया भर पचरी पन
बिन पानी कहाँ नहावंय!
गली खोर अउ चौबट्टा म
हेंडपंप जब हालंय!
बिन पानी के दू असाढ़ कस
बैरी जइसन घालंय!
जलधारा स्कीम मनइ के
संसार ल सरसावत हें!
चौमसहा जब झड़ी झकोरय
चमचम बिजली मारय!
चिमनी दीया बुझावंय झप-झप
बिना तेल का बारंय!
अँधियारी म टमड़त परछी
बर मनटोरा जावय!
सन्डमइला काड़ी ल बपरी
लकर-धकर सुलगावय!
अब एक ल बती ह घर घर
म अंजोर बगरावत हें!
बादर बरसय घरती सरसय
बाउग करंय बियासी!
चिखला कांदो कांटा खूंटी
उखरा गोड़ उपासी!
परय तुतारी टिकला बलहा
छद बद छद बद भागंय!
अमरित खातिर जनव मतावंय
क्षीर समुंदर लागंय!
अब टेटर के आगू कोपर
नागर ल सरकावत हें!
गाँव-गौटिया बड़े किसनहा
गाँव-गंवतरी जावंय।
छकड़ा-गाड़ी घोड़ा-बघ्घी
खूब सुघर संभरावंय!
गर भर घुंघरू कौड़ी बांधय
माथा मलमल पट्टी!
मूंगा माला अउ जुगजुगी
नाथत जावंय सत्तीं!
अब दरवजा फटफटही अउ
जीप कार घर्रावत हें!
छन छन खन खन घंरा बाजंय
सरपट बैला भागंय!
चमकंय झझकंय डहर चलइया
सुतनिंदहा मन जागंय!
ढरका फुदकी टपटप टपटप
धोड़ा चाल देखावंय!
चाबुक देखे बिदकंय बैरी
जोरहा हिन हिनावय!
बर बिहाव सरकस म अब तो
धोड़ा कभू नचावत हें!