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"अन्तिम सुबह / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / ओक्ताविओ पाज़" के अवतरणों में अंतर

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समा जाते हैं इस कमरे के भीतर ही।
 
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हम जो छोटे हैं आखिर हैं कितने बड़े !
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प्रेतों से भरी।
 
प्रेतों से भरी।
  

15:06, 27 नवम्बर 2016 का अवतरण

तुम्हारे केश
जंगल में खो गए हैं,
तुम्हारे पैर छू रहे हैं मेरे पैर।

सोए हुए तुम
रात से भी बड़े लगते हो,
लेकिन तुम्हारे सपने
समा जाते हैं इस कमरे के भीतर ही।

हम जो छोटे हैं आख़िर हैं कितने बड़े !

बाहर गुज़रती है एक टैक्सी
प्रेतों से भरी।

पास ही बहने वाली नदी
                   हमेशा
बहती है उल्टी।

क्या कल का दिन होगा कुछ और ?

अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’